India News (इंडिया न्यूज), Story of Bhishma Death in Mahabharat: महाभारत के युद्ध के दसवें दिन, जब भीष्म पितामह ने शिखंडी के सामने आते ही अपने हथियार जमीन पर रख दिए थे और अर्जुन ने उन्हें बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था, वह क्षण महाभारत के सबसे दुखद और महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भीष्म की मृत्यु के पीछे सिर्फ अर्जुन या शिखंडी का हाथ नहीं था? क्या आप जानते हैं कि भीष्म की मृत्यु की पटकथा दरअसल उनकी सौतेली मां, सत्यवती ने कई साल पहले लिख दी थी? आइए जानते हैं इस दिलचस्प और जटिल कहानी के बारे में, जो महाभारत के युद्ध से कहीं पहले शुरू होती है।
भीष्म की मृत्यु की शुरुआत: सत्यवती की योजना
महाभारत की घटनाएं और पात्र इतने गहरे और जटिल होते हैं कि कई बार हमें लगता है कि युद्ध में हुई घटनाएं तुरंत घटित हो गईं। लेकिन जब हम इन घटनाओं के पीछे की कहानियों को समझते हैं, तो हम पाते हैं कि कई घटनाएं पूर्व नियोजित थीं और उन घटनाओं ने बाद में युद्ध की दिशा बदल दी।
भीष्म की मृत्यु की कहानी भी एक ऐसी ही पूर्व नियोजित योजना का परिणाम थी। इसकी शुरुआत होती है सत्यवती से, जो भीष्म की सौतेली मां थीं और पांडवों और कौरवों के युद्ध के दौरान एक प्रमुख कड़ी थीं। सत्यवती ने जब अपने बेटे विचित्रवीर्य के लिए काशी नरेश की तीन बेटियों का हाथ मांगा था, तो उन्होंने यह सब कुछ अपने बेटे के भविष्य के लिए किया था, लेकिन यह घटना भीष्म के जीवन की दिशा बदलने वाली थी।
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भीष्म का काशी नरेश की बेटियों से अपहरण
कहानी में एक और जटिल मोड़ आता है जब भीष्म ने सत्यवती की इच्छा के अनुरूप काशी नरेश की तीन बेटियों को अपहरण कर लाया था। इन बेटियों में से एक थी अंबा, जो बाद में महाभारत के युद्ध की अहम कड़ी बनी। अंबा ने भीष्म से विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, क्योंकि वह पहले से ही शाल्व राज के प्रति प्रेम में थी। भीष्म के साथ उसका विवाह नहीं हो पाया, और वह गुस्से में भरकर शिखंडी बन गई, जो बाद में युद्ध भूमि पर भीष्म के खिलाफ खड़ा हुआ।
यदि भीष्म काशी नरेश की बेटियों का अपहरण नहीं करते, तो अंबा का गुस्सा और शिखंडी का जन्म नहीं होता। अंबा की शिखंडी बनने की प्रक्रिया ने एक नई दिशा में मोड़ लिया और अर्जुन की बाणों की शैय्या पर भीष्म को लिटाने का अवसर प्रदान किया।
भीष्म की मृत्यु की पटकथा का लिखना
अब आते हैं उस महत्वपूर्ण बिंदु पर, जब हम समझते हैं कि भीष्म की मृत्यु की पटकथा किसने लिखी थी। सत्यवती ने अपने बेटे विचित्रवीर्य के विवाह के लिए जो योजना बनाई थी, वह भीष्म की मृत्यु का कारण बन गई। यह सत्यवती की योजना का हिस्सा था कि वह भीष्म से बिना विवाह के उनके जीवन को खुद ही समाप्त करवा सके। सच कहें तो, वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भीष्म के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही थीं।
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भीष्म की मृत्यु का कारण मात्र अर्जुन या शिखंडी नहीं थे, बल्कि यह सारी घटनाएं सत्यवती की उस दूरदर्शिता का परिणाम थीं, जो उन्होंने भीष्म के जीवन में दखल देते हुए अपने बेटे के लिए बनाई थी। एक तरह से, भीष्म पितामह की मृत्यु की साजिश बहुत पहले से ही तैयार हो चुकी थी।
भीष्म की मृत्यु और धर्म का प्रश्न
भीष्म की मृत्यु महाभारत के युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि उनका जीवन और मृत्यु दोनों ही धर्म और आदर्श के प्रश्नों को उठाते हैं। भीष्म का त्याग, उनके द्वारा लिए गए वचन और उनका शौर्य सभी ने उन्हें पितामह की उपाधि दिलाई थी। लेकिन जब वे शिखंडी के सामने आए और अपने हथियार गिरा दिए, तो यह क्षण महाभारत के युद्ध की समाप्ति की दिशा में एक कदम था। शिखंडी को देखकर भीष्म ने यह मान लिया कि अब उनका समय खत्म हो चुका है।
यह केवल शिखंडी या अर्जुन का प्रभाव नहीं था, बल्कि एक लंबी और जटिल श्रृंखला का परिणाम था, जिसमें सत्यवती की योजना भीष्म के लिए मृत्यु का कारण बन गई।
भीष्म पितामह की मृत्यु केवल एक युद्ध का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह एक बड़ी राजनीतिक और पारिवारिक साजिश का परिणाम थी, जो कई सालों पहले शुरू हुई थी। सत्यवती की योजना ने भीष्म के जीवन और मृत्यु को प्रभावित किया, और महाभारत की अंतिम लड़ाई में उनका त्याग एक दुखद और जटिल कहानी का हिस्सा बन गया। अगर सत्यवती ने अपने बेटे के लिए यह कदम नहीं उठाया होता, तो शायद महाभारत का युद्ध भी कुछ अलग तरीके से घटित होता।
इस प्रकार, महाभारत की कहानियां न केवल युद्ध और शौर्य की हैं, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती हैं कि पारिवारिक राजनीति और व्यक्तिगत इच्छाएं कभी-कभी बड़े फैसलों और परिणामों का कारण बन सकती हैं।