India News (इंडिया न्यूज), Story Of Shurpanakha: रामायण की कहानी में शूर्पणखा का ज़िक्र अक्सर सिर्फ एक राक्षसी और रावण की बहन के रूप में किया जाता है। अधिकतर लोग उसे उस स्त्री के रूप में जानते हैं जिसकी नाक काटने के बाद रावण ने सीता का हरण किया और युद्ध छिड़ा। लेकिन शूर्पणखा की पहचान और भूमिका इससे कहीं अधिक जटिल है। वह ऋषि विश्रवा और कैकसी की पुत्री थी, यानी वह रावण, कुंभकर्ण और विभीषण की बहन थी। उसका असली नाम मीनाक्षी था, जिसका अर्थ होता है “सुंदर आँखों वाली।” सूप (बड़ा छलनीनुमा पात्र) जैसे नाखून होने के कारण उसका नाम शूर्पणखा पड़ा। वह केवल एक सामान्य राक्षसी नहीं थी, बल्कि मायावी शक्तियों में निपुण थी और किसी भी रूप में खुद को बदलने की क्षमता रखती थी।
पति की हत्या और शूर्पणखा का श्राप
शूर्पणखा का विवाह दानवराज विद्युविह्वा से हुआ था, जो एक शक्तिशाली योद्धा और विष्णु भक्त था। जब रावण को यह पता चला कि उसका बहनोई भगवान विष्णु का उपासक है, तो उसे सहन नहीं हुआ। क्रोध में आकर रावण ने विद्युविह्वा की हत्या कर दी। अपने पति की मृत्यु से दुखी शूर्पणखा ने रावण को श्राप दिया कि उसके कारण ही उसका विनाश होगा। इस घटना के बाद रावण ने शूर्पणखा को अपने भाई खर के पास भेज दिया, जो दंडकारण्य में रहता था। यही वह स्थान था जहाँ श्रीराम और लक्ष्मण वनवास काट रहे थे।
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राम-लक्ष्मण से प्रेम के बाद हुआ अपमान
दंडकारण्य में शूर्पणखा की भेंट श्रीराम से हुई। वह उनकी सुंदरता और दिव्यता से मोहित हो गई और विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन राम ने स्वयं को पहले से विवाहित बताकर इनकार कर दिया और उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने भी उसका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया और उसका अपमान करते हुए उसकी नाक काट दी। इस अपमान से क्रोधित होकर वह रावण के पास गई और सीता के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन किया। उसने रावण को उकसाया कि वह सीता का हरण कर ले। इसी घटना ने आगे चलकर रामायण के युद्ध की नींव रखी।
वनवास में सीता से हुई मुलाकात
एक रोचक कथा के अनुसार, जब श्रीराम ने एक धोबी द्वारा माता सीता के चरित्र पर प्रश्न उठाने के बाद उन्हें त्याग दिया, तब वे ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगीं। इसी दौरान शूर्पणखा को यह समाचार मिला और वह माता सीता से मिलने वहाँ पहुँची। शूर्पणखा ने सीता को ताने मारते हुए कहा कि जिस तरह राम और लक्ष्मण ने उसका अपमान किया था, उसी प्रकार अब उन्हें भी त्याग दिया गया है। लेकिन माता सीता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और उसे मुस्कुराते हुए ताजे जामुन दिए। माता सीता की शांत प्रतिक्रिया से शूर्पणखा चकित रह गई। माता सीता ने उसे समझाया कि प्रतिशोध की आग में जलते रहने से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने शूर्पणखा को प्रेम और क्षमा का महत्व समझाया। इस पर शूर्पणखा को आत्मग्लानि हुई और वह वहाँ से चली गई।
आखिर कहाँ गई शूर्पणखा?
रामायण के प्रमुख ग्रंथों में शूर्पणखा के अंत का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन कई पौराणिक कथाओं में इसके अलग-अलग विवरण मिलते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, रावण की मृत्यु के बाद वह विभीषण के साथ लंका में रह गई थी। कुछ कहानियाँ बताती हैं कि वह तपस्या करने चली गई थी। एक अन्य कथा के अनुसार, शूर्पणखा और उसकी सौतेली बहन कुंबिनी समुद्र किनारे मृत अवस्था में पाई गई थीं। यह रहस्य बना हुआ है कि उसका अंत कैसे हुआ।
कौन थी शूर्पणखा?
शूर्पणखा को केवल एक विलेन मान लेना उसकी कहानी के साथ अन्याय होगा। उसके जीवन में दुख, प्रेम, अपमान और प्रतिशोध के कई रंग थे। एक ओर, उसने अपने पति को खोया, अपने भाइयों के हाथों अपमानित हुई और अंत में अकेली रह गई। दूसरी ओर, वह ही वह स्त्री थी जिसके कारण पूरी रामायण आगे बढ़ी। शूर्पणखा की कहानी हमें सिखाती है कि प्रतिशोध और क्रोध का परिणाम हमेशा विनाशकारी होता है। शायद अगर उसने अपने अपमान का बदला लेने की बजाय अपने जीवन को एक नई दिशा दी होती, तो उसकी कथा कुछ और होती।