India News (इंडिया न्यूज), Shani Jayanti 2025: भारत की पावन भूमि देवताओं, ऋषियों, और तपस्वियों की लीलास्थली रही है। यहां की प्रत्येक नदी, पर्वत, और वन किसी न किसी दिव्य कथा को समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक अनुपम कथा भगवान शनि देव से जुड़ी है, जिनका जन्म उज्जैन में स्थित त्रिवेणी संगम के पवित्र स्थल पर हुआ था। यह प्रसंग स्कंद पुराण के पंचम खंड अवंती खंड के “क्षाता संगम माहात्म्य” अध्याय (अध्याय 67, श्लोक 46-55) में वर्णित है।
सूर्य, संध्या और छाया की कथा
भगवान सूर्य का विवाह त्वष्टा विश्वकर्मा की पुत्री संध्या से हुआ था। संध्या से सूर्य देव को तीन संतानें प्राप्त हुईं—मनु, यम, और यमुना। लेकिन सूर्य का तेज संध्या के लिए असहनीय था। उन्होंने अपनी छाया से एक प्रतिरूप उत्पन्न किया और उसे छाया नाम दिया। स्वयं तपस्या करने के लिए पिता के घर लौट गईं।
संध्या ने उज्जैन के महाकाल वन में घोड़ी का रूप धारण कर गहन तपस्या की। उधर, छाया ने सूर्य देव की सेवा की, लेकिन यम को पीड़ा पहुँचाने के कारण सूर्य देव को संदेह हुआ। ध्यानस्थ होने पर उन्हें संध्या की वास्तविक स्थिति का ज्ञान हुआ।
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महाकाल वन और अश्विनी कुमारों का जन्म
सूर्य देव संध्या की खोज में महाकाल वन पहुंचे, जहां क्षिप्रा और क्षाता नदियों का संगम होता है। संध्या घोड़ी के रूप में तपस्या कर रही थीं। सूर्य ने घोड़े का रूप धारण कर संध्या के समीप गए। उनके संयोग से संध्या की नासिका से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ, जो देवताओं के वैद्य बने।
शनि देव का जन्म
इसी समय छाया भी त्रिवेणी संगम पहुंचीं। उन्होंने एक पुत्र और एक कन्या को जन्म दिया। कन्या तापी तपस्या कर नदी बन गईं, और पुत्र शनैश्चर, कर्म के दंडाधिकारी बने। यही स्थान शनि देव की जन्मभूमि के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
त्रिवेणी संगम की महिमा
त्रिवेणी संगम—जहां क्षिप्रा, क्षाता, और गुप्त सरस्वती नदियां मिलती हैं—मोक्ष प्रदायक माना गया है। यहां स्नान, दान, और स्थावरेश्वर महादेव के दर्शन से समस्त पापों का नाश होता है। शनि पीड़ा का शमन करने के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है।
नवग्रहों की तपस्थली
स्कंद पुराण के अनुसार, नवग्रहों ने यहां शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की। उनके द्वारा स्थापित लिंगों के नाम हैं—नरादित्य, सोमेश्वर, मंगलेश्वर, बुधेश्वर, बृहस्पतीश्वर, शुक्रेश्वर, स्थावरेश्वर, मुनीश्वर, राहु-केतुऐश्वर। इसी कारण यह स्थल नवग्रह त्रिवेणी शनि मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।
शनि देव के नाम और स्तोत्र
शनि देव के विभिन्न नाम हैं, जिनका जाप शनि पीड़ा को शांत करता है:
सौरिः शनैश्चरो मन्दः कृष्णोऽनन्तोऽन्तको यमः।
पिङ्गश्छायासुतो बभ्रुः स्थावरः पिप्पलायनः॥
(स्कंद पुराण 5/1/67/53-54)
प्रातःकाल इन नामों का पाठ करने से शनि जनित कष्ट समाप्त होते हैं।
शनि देव का रंग क्यों हुआ काला?
कालिका पुराण के अनुसार, शिव के तांडव के दौरान उनके नेत्रों से अग्निस्वरूप आंसू निकले, जिन्हें शनि देव ने पी लिया। इस घटना के कारण उनका शरीर काला पड़ गया।
राजा विक्रमादित्य और शनि मंदिर
उज्जैन के त्रिवेणी संगम पर राजा विक्रमादित्य ने शनि देव और नवग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। उन्होंने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भी भक्तों के लिए आस्था और शांति का केंद्र है। यहां शनि देव के साथ श्री गणेश जी, ढैय्या शनि, और श्री बालाजी हनुमान विराजमान हैं।
शनिदेव—न्याय के प्रतीक
शनिदेव केवल दंडाधिकारी नहीं, बल्कि न्याय और सुधार के देवता हैं। जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, शनि उसके रक्षक बन जाते हैं। उज्जैन का त्रिवेणी संगम यह संदेश देता है कि हर तप, त्याग, और न्याय का फल निश्चित है।