India News (इंडिया न्यूज), Santhara Pratha: इंदौर में तीन साल की बच्ची वियाना जैन ने ब्रेन ट्यूमर से जूझते हुए जैन धर्म की प्राचीन प्रथा “संथारा” को धारण किया। इस प्रक्रिया के तुरंत बाद उसकी मृत्यु हो गई। वियाना को सबसे कम उम्र में संथारा लेने के लिए ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में स्थान दिया गया है। जैन धर्म में “संथारा” या “सल्लेखना” एक आध्यात्मिक व्रत है, जिसमें व्यक्ति जीवन के अंतिम क्षणों में अन्न-जल का त्याग कर भौतिक मोह-माया से दूर होता है। यह प्रथा तब अपनाई जाती है जब जीवन असहनीय हो जाता है और व्यक्ति मृत्यु का सामना शांतिपूर्वक करना चाहता है।
वियाना का जीवन और धर्म से जुड़ाव
वियाना जैन, महज तीन साल की बच्ची, अपने छोटे जीवन में ही धर्म के प्रति गहरी आस्था रखती थी। उसके माता-पिता ने उसे गोशाला जाना, कबूतरों को दाना डालना और गुरुदेव के दर्शन करना सिखाया। जनवरी में मुंबई में ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी असफल रहने के बाद, उसके माता-पिता ने गुरु राजेश मुनि महाराज के सान्निध्य में संथारा का निर्णय लिया।
क्यों पुराने समय के घरों में जरूर लगाएं जाते थे 2 पल्लों वाले गेट?
संथारा की प्रक्रिया और मृत्यु
गुरुजी ने वियाना की स्थिति को देखते हुए सुझाव दिया कि उसका जीवन चंद घंटों का मेहमान है। मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ संथारा की प्रक्रिया पूरी होने के दस मिनट बाद बच्ची ने अपने प्राण त्याग दिए। इस घटना को जैन समाज ने आस्था और समर्पण का प्रतीक मानकर सराहा।
विवाद और नैतिक प्रश्न
हालांकि संथारा जैन धर्म में आत्मा की शुद्धि का मार्ग माना जाता है, यह मामला कई नैतिक और कानूनी प्रश्न खड़े करता है। एक तीन साल की बच्ची, जो खुद निर्णय लेने में असमर्थ थी, क्या वह इस प्रथा को समझ पाई होगी? क्या धार्मिक प्रक्रिया के तहत इसे अनुमति देना न्यायसंगत है? भारत में इच्छामृत्यु की अनुमति केवल कड़े नियमों के तहत है।
पुलिस और कानूनी स्थिति
इंदौर पुलिस का कहना है कि उन्हें इस मामले की कोई सूचना नहीं दी गई थी। भारत में कानून के तहत “संथारा” की अनुमति पर पहले भी विवाद हुआ है। 2015 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने इसे आत्महत्या की श्रेणी में रखा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाई थी।
अंतिम संस्कार के वक्त आखिर क्यों शव के सिर पर मारा जाता है 3 बार डंडा? किसने शुरू कि थी ये प्रथा
धार्मिक परंपरा बनाम मानव अधिकार
संथारा जैन धर्म की पवित्र परंपरा है, लेकिन इसकी अनुमति केवल उन्हीं को है जो जीवन और मृत्यु के गहन अर्थ को समझने में सक्षम हों। क्या एक तीन साल की बच्ची इस स्थिति में थी? क्या “गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स” में नाम दर्ज कराना उसके जीवन से अधिक महत्वपूर्ण था?
संथारा: त्याग या जिम्मेदारी?
संथारा को त्याग का प्रतीक माना जाता है, लेकिन बच्चों और युवाओं के मामले में इसे कैसे न्यायोचित ठहराया जा सकता है? क्या यह मामला एक मासूम की चुप मौत भर है, या धर्म और मानवता के बीच संतुलन का उदाहरण?
वियाना जैन की कहानी धर्म और जीवन के बीच जटिल सवाल खड़े करती है। यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या धार्मिक आस्थाओं को मासूम बच्चों की भलाई से ऊपर रखा जा सकता है। इस मामले से हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि धार्मिक परंपराओं को मानव अधिकारों और नैतिकता के साथ संतुलित करना कितना महत्वपूर्ण है।