India news (इंडिया न्यूज), Ravan Real Name: रावण एक ऐसा नाम जो शक्ति, घमंड, ज्ञान और भक्ति का अद्भुत संगम है। रामायण का यह पात्र जितना प्रसिद्ध है, उतनी ही रहस्यमयी है इसकी पहचान। बहुत कम लोग जानते हैं कि रावण का असली नाम ‘रावण’ नहीं था। उसके पिता ऋषि विश्रवा ने उसका नाम दशग्रीव या दशानन रखा था, जिसका अर्थ होता है दस सिरों वाला। लेकिन फिर वह ‘रावण’ कैसे कहलाया? इसके पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा छुपी हुई है, जो भगवान शिव से जुड़ी है।

दशग्रीव से रावण बनने की कथा

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब रावण ने ब्रह्माजी से अजेयता का वरदान प्राप्त किया, तब वह घमंड से भर गया। उसी घमंड में उसने समस्त लोकों पर विजय प्राप्त करनी शुरू की। लंका का राजा बनकर वह पहले अपने सौतेले भाई कुबेर को पराजित करता है और उसके पुष्पक विमान को छीन लेता है। इसके बाद वह कैलाश पर्वत की ओर बढ़ता है, जहां भगवान शिव अपने निवास स्थान पर विराजमान होते हैं।

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नंदी और रावण का सामना

कैलाश पहुंचने पर रावण को भगवान शिव के गण, नंदी बैल द्वारा रोका जाता है। नंदी उसे चेतावनी देते हैं कि यह स्थान भगवान शिव का है और यहां किसी भी अतिक्रमण की अनुमति नहीं है। इस पर रावण अहंकार में बोल उठता है, “शिव कौन हैं? उन्हें भी अब मेरी शक्ति का अनुभव होगा।”

कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास

अपने बल का प्रदर्शन करने के लिए रावण पूरे कैलाश पर्वत को अपने दोनों हाथों से उठाने का प्रयास करता है। जैसे ही वह पर्वत को ऊपर उठाता है, भगवान शिव मुस्कराते हैं और अपने पैर के अंगूठे को पर्वत पर हल्के से रख देते हैं। उस स्पर्श मात्र से ही पूरा पर्वत भारी हो जाता है और रावण के हाथ बुरी तरह कुचल जाते हैं। वे पर्वत के नीचे दबकर कराहने लगता है और जोर-जोर से चिल्लाता है।

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‘रावण’ नाम की उत्पत्ति

रावण की वेदना इतनी तीव्र थी कि उसकी चीखों से तीनों लोकों में कंपन होने लगता है। उसी समय वह अपने कष्ट से उबरने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना करता है। उसकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसे क्षमा कर देते हैं और आशीर्वाद देते हैं कि, “तू आज से ‘रावण’ के नाम से जाना जाएगा।”

संस्कृत शब्द “रावण” का अर्थ होता है—जो जोर से और भयानक रूप में रोया हो, या जिसकी गर्जना से सब कांप उठें। इस प्रकार ‘रावण’ नाम उसके क्रंदन और शिव-भक्ति दोनों का प्रतीक बन गया।

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शिव भक्त रावण

इस घटना के बाद रावण भगवान शिव का परम भक्त बन गया। उसने शिवलिंग की स्थापना के लिए रामेश्वरम् में भी यात्रा की और कई बार शिव की आराधना कर अपार शक्तियां प्राप्त कीं। यहीं से रावण केवल एक ज्ञानी राक्षस ही नहीं, बल्कि शिव भक्ति का प्रतीक भी बन जाता है।

रावण का नाम केवल उसका परिचय नहीं, बल्कि एक गहरी पौराणिक कथा का सार है। दशानन से रावण बनने की यह यात्रा बताती है कि अहंकार चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, ईश्वर के सामने झुकना ही पड़ता है। यह कथा रावण के व्यक्तित्व के एक अलग पहलू को उजागर करती है—एक ऐसा पहलू, जिसमें भक्ति, विनम्रता और आत्मबोध छुपा है।

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