India News (इंडिया न्यूज), Hanuman with Arjuna in Mahabharat: भारतीय महाकाव्य और पुराणों में कई ऐसी कहानियां हैं जो न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि जीवन के गूढ़ सत्य और शिक्षाओं को भी प्रकट करती हैं। ऐसी ही एक कहानी है महाबली हनुमान और महान धनुर्धर अर्जुन की मुलाकात की, जिसमें अर्जुन के अहंकार को हनुमान जी ने एक अनोखे तरीके से दूर किया। यह कथा हमें विनम्रता, समर्पण और सत्य की महत्ता का बोध कराती है।


कथा का प्रारंभ:

यह घटना तब की है जब अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ तीर्थ यात्रा पर निकले थे। एक दिन समुद्र तट पर बैठे हुए अर्जुन के मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उन्होंने सोचा कि भगवान राम जैसे अद्वितीय धनुर्धर ने क्यों वानरों और भालुओं से समुद्र पर पत्थरों का पुल बनवाया, जबकि वे अपने तीरों से ही पुल बना सकते थे। इस विचार ने अर्जुन को आश्चर्य में डाल दिया।

तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए। हनुमान जी ने अर्जुन से उनकी चिंताओं का कारण पूछा। अर्जुन ने विनम्रता से कहा, “भगवान राम इतने बड़े योद्धा थे, फिर भी उन्होंने समुद्र पर पत्थरों से पुल क्यों बनवाया? क्या यह उनकी कमजोरी थी?”

हनुमान जी ने यह सुनकर मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “यह श्रीराम की विनम्रता और उनकी सामूहिक प्रयासों में विश्वास का प्रतीक है।” लेकिन अर्जुन को यह उत्तर संतोषजनक नहीं लगा। उनकी सोच यह थी कि उनके जैसे धनुर्धर के लिए समुद्र पर पुल बनाना कोई बड़ी बात नहीं।

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शर्त और परीक्षा:

अर्जुन की बातों में अहंकार झलक रहा था। इसे देखकर हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड दूर करने के लिए एक शर्त रखी। उन्होंने कहा, “यदि तुम अपने धनुष के तीरों से ऐसा पुल बना सको, जो मेरे वजन को सह सके, तो मैं मानूंगा कि तुम्हारा कौशल भगवान राम से श्रेष्ठ है।” अर्जुन ने तुरंत चुनौती स्वीकार की और अपने धनुष से तीरों का एक सुंदर पुल बना दिया।

हनुमान जी ने विशालकाय रूप धारण कर पुल पर कदम रखा। जैसे ही उन्होंने पहला कदम रखा, तीरों का पुल डगमगाने लगा और कुछ ही क्षणों में टूट गया। अर्जुन यह देखकर स्तब्ध रह गए और अपने किए पर लज्जित हुए। उन्होंने हनुमान जी और भगवान राम का अपमान करने के लिए क्षमा मांगी।

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भगवान श्रीकृष्ण का हस्तक्षेप:

अर्जुन ने अपने घमंड और वचन के कारण अग्नि में जलकर प्रायश्चित करने का निश्चय किया। जैसे ही अर्जुन अग्नि में कूदने को तैयार हुए, भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए। उन्होंने अर्जुन को समझाते हुए कहा, “हनुमान जी का उद्देश्य तुम्हें नीचा दिखाना नहीं, बल्कि तुम्हारे अहंकार को दूर करना था। कोई भी कौशल तब तक सार्थक नहीं होता, जब तक उसमें समर्पण और विनम्रता न हो।”

भगवान कृष्ण ने तीरों के पुल को फिर से सुदृढ़ कर दिया, और हनुमान जी ने पुल पर चढ़कर उसे पार कर लिया। इस चमत्कार ने अर्जुन को यह समझाया कि मानव शक्ति के साथ-साथ दिव्य अनुकंपा भी आवश्यक है।


हनुमान और अर्जुन की इस प्रेरणादायक कथा का महत्व केवल पौराणिक नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में भी है। यह हमें सिखाती है कि किसी भी उपलब्धि या कौशल के साथ विनम्रता और ईश्वर में आस्था रखना अनिवार्य है। श्रीकृष्ण, हनुमान और राम के इस संदेश को आत्मसात करके हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

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