India News (इंडिया न्यूज), Garun Puran Rahasya: सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न संस्कारों को निभाने की परंपरा है, जिन्हें 16 संस्कारों में विभाजित किया गया है। इन संस्कारों का उद्देश्य जीवन को पवित्र और संतुलित बनाना है। 16 संस्कारों में अंतिम संस्कार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह न केवल मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, बल्कि यह शेष परिवारजनों को जीवन के चक्र को समझने का अवसर भी प्रदान करता है।
अस्थि-संचयन का समय: तीन दिन बाद क्यों?
अंतिम संस्कार की रस्मों के तहत, मृत शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाता है, जिसे मुखाग्नि कहा जाता है। इसके तीन दिन बाद, परिवारजन श्मशान जाकर अस्थियां एकत्र करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि अस्थि-संचयन तीन दिन बाद ही क्यों किया जाता है?
गरुण पुराण, जो सनातन धर्म के 18 प्रमुख पुराणों में से एक है, में इस प्रथा का विशेष उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार, अंतिम संस्कार के दौरान मंत्रोच्चार से अस्थियों में एक विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है। इन ऊर्जा तरंगों का प्रभाव तीन दिनों तक बना रहता है। इस अवधि में अस्थियों को छेड़ने से उस ऊर्जा प्रवाह में विघ्न आ सकता है। इसलिए, परिवारजनों को निर्देश दिया गया है कि वे तीन दिन के बाद ही अस्थि-संचयन करें।
अस्थियों का विसर्जन: मुक्ति का मार्ग
गरुण पुराण के अनुसार, हमारा शरीर पांच तत्वों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — से बना है। अंतिम संस्कार के बाद, ये तत्व अपने मूल स्वरूप में लौट जाते हैं। अस्थियों का विसर्जन, जिसे आमतौर पर पवित्र नदियों — विशेष रूप से गंगा — में किया जाता है, आत्मा की मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
भगवद गीता में भी आत्मा की अजर-अमरता का वर्णन किया गया है। गीता के अनुसार, आत्मा न तो मरती है और न ही नष्ट होती है। अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन आत्मा को अगले जन्म के लिए मार्ग प्रशस्त करने में सहायता करते हैं। इस प्रक्रिया से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और उसे जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
धार्मिक महत्व के अलावा, अस्थि-संचयन और विसर्जन की प्रक्रिया में एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। अंतिम संस्कार के दौरान शरीर से निकलने वाले विभिन्न जैविक तत्व धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। तीन दिनों तक प्रतीक्षा करने से यह सुनिश्चित होता है कि अस्थियां सुरक्षित और शुद्ध रूप में एकत्र की जा सकें। इसके साथ ही, यह समय परिवारजनों को मानसिक रूप से इस प्रक्रिया के लिए तैयार होने का अवसर भी देता है।
सनातन धर्म में अंतिम संस्कार और उससे जुड़ी परंपराओं का गहरा महत्व है। गरुण पुराण में वर्णित शिक्षाएं न केवल धार्मिक बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी उपयोगी हैं। तीन दिन बाद अस्थि-संचयन और गंगा में विसर्जन की यह प्रथा मृत आत्मा को शांति प्रदान करने और परिवार को धैर्य व संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि मृत्यु एक अंत नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है।