India News (इंडिया न्यूज), Facts About Ramayan: भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर समूचे नगर में हर्षोल्लास का वातावरण था। अयोध्या में भगवान राम का राजतिलक हो रहा था, और यह शुभ अवसर सभी के लिए आनंद और उत्सव का कारण बना। इस महान अवसर पर माता सीता ने हनुमान जी को रत्नों से जड़ी एक बहुमूल्य माला भेंट की। यह माला माता सीता के प्रति सम्मान और प्रेम का प्रतीक थी।

हनुमान जी ने इस माला को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया। लेकिन कुछ ही देर बाद उन्होंने इस माला को तोड़कर उसके मोतियों को ध्यानपूर्वक देखने लगे और फिर एक-एक करके उन्हें फेंकने लगे। यह देखकर सभी लोग चकित हो गए। लक्ष्मण जी को इस घटना पर विशेष रूप से क्रोध आया, क्योंकि उन्हें यह माता सीता का अपमान प्रतीत हुआ।

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लक्ष्मण जी का क्रोध और हनुमान जी का उत्तर

लक्ष्मण जी ने हनुमान जी से कड़े शब्दों में पूछा, “हनुमान, तुमने माता सीता द्वारा दी गई इस पवित्र माला को तोड़कर मोतियों को क्यों फेंका? यह क्या अशिष्टता है?”

हनुमान जी ने अत्यंत शांति और विनम्रता के साथ उत्तर दिया, “हे लक्ष्मण जी, मैं इस माला के प्रत्येक मोती को देखकर यह जानने का प्रयास कर रहा था कि इनमें मेरे प्रभु श्रीराम और माता सीता का नाम है या नहीं। यदि इन मोतियों में राम का नाम नहीं है, तो यह मेरे लिए निरर्थक है।”

हनुमान जी के इस उत्तर ने सभी को चकित कर दिया। लक्ष्मण जी ने कटाक्ष करते हुए कहा, “यदि ऐसा है, तो क्या तुम्हारे शरीर में भी राम-नाम मौजूद है?”

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हनुमान जी का अद्भुत प्रमाण

लक्ष्मण जी के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हनुमान जी ने तुरंत अपने वक्षस्थल को चीर दिया। यह दृश्य देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। हनुमान जी के हृदय में श्रीराम और माता सीता का दिव्य स्वरूप प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा था। यह प्रमाण था कि हनुमान जी का सम्पूर्ण अस्तित्व ही राम-भक्ति के लिए समर्पित था।

इस प्रसंग का महत्व

यह कथा हनुमान जी की अद्वितीय भक्ति और भगवान राम के प्रति उनके असीम प्रेम को दर्शाती है। यह हमें सिखाती है कि किसी भी भौतिक वस्तु का महत्व तभी है, जब उसमें आत्मा और सच्चाई हो। हनुमान जी ने यह बताया कि बाहरी आभूषण या वस्त्र की तुलना में भगवान का नाम और उनकी भक्ति अधिक मूल्यवान है।

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इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि सच्ची भक्ति में दिखावे का कोई स्थान नहीं है। भक्ति का वास्तविक स्वरूप वह है, जिसमें भक्त का तन-मन-धन पूरी तरह से भगवान के चरणों में समर्पित हो।

हनुमान जी के इस अद्भुत प्रसंग से हम सभी को यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने जीवन में ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था और समर्पण को स्थान देना चाहिए। उनका यह चरित्र यह भी सिखाता है कि भक्ति और प्रेम में कोई भेदभाव या संदेह नहीं होता। भगवान राम के प्रति हनुमान जी का यह अमर प्रेम और भक्ति हमें जीवन में सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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