India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat Story: कुरुक्षेत्र इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित एक ऐसा नाम है, जो न केवल एक विशेष स्थान का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि धर्म, न्याय और बलिदान की गाथा का भी प्रतीक है। भूरिश्रवा ने महाभारत को रोकने का प्रयास किया था। कुरुक्षेत्र हमें धर्म की स्थापना के लिए सदैव प्रयास करने की प्रेरणा देता है। इसे धर्मक्षेत्र क्यों कहा जाता है, इसके पीछे एक रोचक कथा है।
राजा कुरु का बलिदान और धर्मक्षेत्र की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों और कौरवों के पूर्वज राजा कुरु इस क्षेत्र में धर्म की खेती कर रहे थे। एक बार भगवान इंद्र ने उनसे पूछा कि वे बिना बीज के यहां क्या कर रहे हैं, तो राजा ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनके पास बीज हैं। इंद्र चले गए, लेकिन फिर भगवान विष्णु आए और उन्होंने भी वही सवाल पूछा। तब राजा कुरु ने अपनी भुजाएं फैलाईं और कहा, “यह बीज है।” भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनकी भुजाएं काट दीं और उन्हें बीज के रूप में बिखेर दिया। राजा ने एक-एक करके अपने शरीर के सभी अंगों का बलिदान कर दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
द्रौपदी चीरहरण और विकर्ण का विरोध
महाभारत में एक महत्वपूर्ण घटना द्रौपदी चीरहरण थी, जिसने धर्म और न्याय के सिद्धांतों को चुनौती दी थी। इस जघन्य कृत्य का विरोध करने वाला एकमात्र व्यक्ति विकर्ण था, जो कौरवों की तरफ था। उसने भरी सभा में द्रौपदी के साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उसकी आवाज दबा दी गई।
महाभारत और भूरिश्रवा द्वारा यज्ञ रोकने के प्रयास
महाभारत एक ऐसा युद्ध था जिसने लाखों लोगों की जान ले ली और यह धर्म की स्थापना के लिए लड़ा गया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस युद्ध को रोकने के प्रयास भी किए गए थे?