India News (इंडिया न्यूज), Amarnath Yatra: पहलगाम, जिसे कश्मीर का ‘स्विट्जरलैंड’ भी कहा जाता है, एक खूबसूरत और ऐतिहासिक स्थान है। हाल ही में यहाँ हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत के बाद यह स्थान चर्चा का विषय बन गया है। प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण यह क्षेत्र हमेशा से श्रद्धालुओं और पर्यटकों का आकर्षण केंद्र रहा है।
अमरनाथ यात्रा और पहलगाम का विशेष संबंध
पहलगाम से ही बाबा अमरनाथ की गुफा की पवित्र यात्रा शुरू होती है। यह यात्रा पहलगाम से शुरू होकर 48 किलोमीटर दूर स्थित अमरनाथ गुफा तक जाती है। इसे पैदल यात्रा के रूप में पूरा किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती ने अमरनाथ गुफा की यात्रा के दौरान अपने नंदी बैल को यहीं छोड़ा था।
इस घटना के प्रतीकात्मक महत्व के कारण, अमरनाथ यात्रा की शुरुआत पहलगाम से की जाती है। पहलगाम का नाम भी भगवान शिव के इस अमरनाथ रूप से जुड़ा हुआ है, जो इसे धार्मिक दृष्टि से एक पवित्र स्थान बनाता है।
पहलगाम का नामकरण और चरवाहों का गांव
पहलगाम को स्थानीय भाषा में ‘बैलगाम’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘पहेल’ कश्मीरी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ ‘चरवाहा’ होता है। यहाँ के हरे-भरे मैदान पशु चराने के लिए उपयुक्त माने जाते हैं, इसलिए इसे ‘चरवाहों का गांव’ भी कहा जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
पहलगाम का इतिहास भी समृद्ध और विविधतापूर्ण है। 14वीं सदी तक यहाँ हिंदू राजाओं का शासन था। 1346 में शम-उद-दीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा करके मुस्लिम शासन की शुरुआत की। बाद में 1586 में, मुगल बादशाह अकबर की फौज ने कश्मीर पर विजय प्राप्त की और पहलगाम भी मुगल सल्तनत का हिस्सा बन गया।
मुगल सल्तनत के पतन के बाद, यह क्षेत्र फिर से हिंदू शासकों के अधीन आ गया। महाराजा हरि सिंह के समय में, 1948 में, यह क्षेत्र भारत का हिस्सा बना।
प्राकृतिक सुंदरता
पहलगाम अपने मनमोहक परिदृश्य, शांत वातावरण और हरे-भरे घास के मैदानों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता न केवल पर्यटकों को आकर्षित करती है, बल्कि यह एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करती है।
पहलगाम केवल एक पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। अमरनाथ यात्रा से इसका विशेष जुड़ाव इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाता है। भले ही समय-समय पर चुनौतियाँ आई हों, लेकिन पहलगाम की महिमा और इसका धार्मिक महत्व अनंत काल तक बना रहेगा।