India News (इंडिया न्यूज), Garun Puran: जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उनके मृत शरीर के नाक और कान के छिद्रों को रूई से बंद करने की परंपरा निभाई जाती है। यह प्रथा न केवल धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक तर्क भी मौजूद हैं। आइए, इस परंपरा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं।

गरुड़ पुराण का उल्लेख

गरुड़ पुराण के अनुसार, मानव शरीर में कुल नौ द्वार होते हैं, जिनमें आंख, नाक, कान और मुंह शामिल हैं। मृत्यु के बाद, इन द्वारों को बंद करना आवश्यक माना गया है। पुराणों में बताया गया है कि इन द्वारों को सोने के टुकड़ों से बंद करना चाहिए। हालांकि, सोने के टुकड़े गिरने का खतरा होता है, इसलिए उनके स्थान पर रूई का उपयोग किया जाता है।

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आत्मा की शांति का उपाय

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा अपने शरीर से मोह नहीं छोड़ पाती और बार-बार शरीर में वापस आने का प्रयास करती है। 9 द्वारों को बंद करने से आत्मा को शरीर में लौटने का मार्ग नहीं मिलता, जिससे उसे शांति प्राप्त होती है।

नेगेटिव शक्तियों से बचाव

कई संस्कृतियों में यह विश्वास है कि मृत्यु के बाद शरीर में अशुभ शक्तियां प्रवेश कर सकती हैं। नाक और कान में रूई डालने से इन शक्तियों से मृत शरीर की रक्षा होती है। यह परंपरा मृत व्यक्ति और उसके परिवार को आध्यात्मिक सुरक्षा का एहसास दिलाती है।

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण

तरल पदार्थों का रिसाव रोकना

मृत्यु के बाद, शरीर से विभिन्न प्रकार के तरल पदार्थ बाहर निकल सकते हैं। रूई इन तरल पदार्थों को अवशोषित करके बाहर निकलने से रोकती है।

गैसों का नियंत्रण

मृत शरीर में बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीव विघटन प्रक्रिया शुरू कर देते हैं, जिससे गैसें उत्पन्न होती हैं। नाक और कान में रूई डालने से गैसों का अनियंत्रित रूप से बाहर निकलना रोका जा सकता है।

बैक्टीरिया और कीटाणुओं से सुरक्षा

रूई मृत शरीर के माध्यम से बैक्टीरिया और कीटाणुओं के प्रवेश को रोकने में मदद करती है। इससे शव के विघटन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जो अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सरल बनाती है।

धार्मिक और वैज्ञानिक संतुलन

मृत शरीर के नाक और कान में रूई डालने की परंपरा धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अनूठा संगम है। यह न केवल आत्मा की शांति और नेगेटिव शक्तियों से बचाव का प्रतीक है, बल्कि यह वैज्ञानिक रूप से भी शव की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

मृत्यु के बाद नाक और कान में रूई डालने की यह प्रथा हमारी परंपराओं और विज्ञान का आदर्श उदाहरण है। यह हमें सिखाती है कि हमारी धार्मिक मान्यताओं और वैज्ञानिक तथ्यों के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।

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