India News (इंडिया न्यूज), Secrets of Kedarnath Mandir: केदारनाथ धाम, हिमालय की ऊंचाइयों पर स्थित भगवान शिव का पवित्र मंदिर, न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की अनूठी धार्मिक परंपराओं के लिए भी विशेष स्थान रखता है। इस मंदिर के मुख्य पुजारी का चयन एक विशेष समुदाय से होता है, जिसे ‘रावल’ समुदाय कहा जाता है। यह परंपरा और इसकी पृष्ठभूमि न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
क्यों केवल दक्षिण भारतीय पुजारी?
केदारनाथ मंदिर में मुख्य पुजारी बनने की परंपरा दक्षिण भारत के रावल समुदाय से संबंधित है। रावल पुजारियों का यह चयन आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में शुरू किया गया था। आदि शंकराचार्य ने वेदांत दर्शन और सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से पूरे भारत में तीर्थ स्थलों की स्थापना और पुनर्स्थापना की।
इस प्रक्रिया में, उन्होंने केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों पर धार्मिक अनुष्ठानों की पवित्रता और प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए दक्षिण भारतीय नंबूदरी ब्राह्मणों को मुख्य पुजारी नियुक्त किया। यह नियुक्ति इसलिए की गई ताकि वेदों और प्राचीन मंत्रों के उच्चारण में विशेषज्ञता रखने वाले पुजारी ही इस कार्य को संभाल सकें।
रावल पुजारी: परंपरा और भूमिका
रावल पुजारी विशेष रूप से कर्नाटक और केरल के नंबूदरी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। यह समुदाय 10वीं शताब्दी से प्राचीन मंत्रों और अनुष्ठानों का अभ्यास करता आ रहा है। रावल पुजारी स्वयं अनुष्ठान नहीं करवाते, बल्कि सहायकों को नियुक्त करते हैं जो अनुष्ठानों का संचालन करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि केदारनाथ मंदिर में पाँच मुख्य पुजारी होते हैं, जो बारी-बारी से मुख्य पद पर आसीन होते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
केदारनाथ में पूजा-अर्चना के लिए रावल और स्थानीय ब्राह्मण समुदाय मिलकर कार्य करते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि विभिन्न समुदायों के बीच समन्वय और सहयोग का भी प्रतीक है। हर दिन केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों में अनुष्ठान करने वाले रावल पुजारी इन दोनों तीर्थ स्थलों के प्रति अपनी गहरी भक्ति और निष्ठा को प्रकट करते हैं।
परंपरा की शुरुआत
ऐतिहासिक रूप से, 12वीं शताब्दी में केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया था। उस समय से यह परंपरा चली आ रही है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि धर्म, संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखने के लिए समय-समय पर नए प्रयास किए गए।
नंबूदरी ब्राह्मणों की भूमिका
केरल के नंबूदरी ब्राह्मण अपनी धार्मिक ज्ञान और वेदों के अध्ययन के लिए प्रसिद्ध हैं। इन पुजारियों का चयन इस आधार पर किया जाता है कि वे पवित्र मंत्रों और अनुष्ठानों में दक्ष होते हैं। केदारनाथ मंदिर में इनकी उपस्थिति और अनुष्ठानों का संचालन धार्मिक वातावरण को और अधिक पवित्र बनाता है।
केदारनाथ मंदिर में दक्षिण भारतीय पुजारियों की नियुक्ति भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह परंपरा न केवल मंदिर की पवित्रता को बनाए रखने में सहायक है, बल्कि यह यह भी दर्शाती है कि कैसे भारत के विभिन्न क्षेत्रों की धार्मिक परंपराएं एकजुट होकर कार्य करती हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई यह परंपरा आज भी जीवित है और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।