India News (इंडिया न्यूज़), Yamraj: हिंदू धर्म के अनुसार यमराज को मृत्यु के देवता के रूप में देखा जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति के प्राण हर लिए जाते हैं तो यमराज उसे मृत्यु के बाद उसके कर्मों की सजा देते हैं। मृत्यु के देवता से हर कोई डरता है, लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार एक ऐसा व्यक्ति था जो मृत्यु के देवता से बिल्कुल भी नहीं डरता था। जब वह यमराज के दरबार में पहुंचा तो उसने अपने जीवनकाल में घटी घटना के लिए यमराज को दोषी ठहराया। आइए जानते हैं आखिर वो कौन था जिसने यमराज को श्राप दिया था और फिर यमराज को धरती पर मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा।
सूली पर चढ़ने के बाद भी नहीं मरे
यमराज को किसने और कब श्राप दिया, इस विषय का उल्लेख महाभारत में ही किया गया है। महाभारत की एक कथा के अनुसार, माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। एक बार वे ध्यान में लीन थे, उसी समय चोरों का एक गिरोह ऋषि के आश्रम में आकर छिप गया। जब तक माण्डव्य ऋषि घटना को समझ पाते, तब तक राजा के सैनिकों ने चोरों को शरण देने के आरोप में माण्डव्य ऋषि को गिरफ्तार कर लिया।
राजा ने गलती से चोरी की सजा के तौर पर ऋषि माण्डव्य को सूली पर चढ़ाने का आदेश दे दिया। आश्चर्य की बात यह है कि जब कुछ दिनों तक सूली पर चढ़ने के बाद भी ऋषि माण्डव्य की मृत्यु नहीं हुई, तो राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने ऋषि से क्षमा मांगी और उन्हें रिहा कर दिया।
ऋषि माण्डव्य ने यमराज को श्राप दे दिया
जिसके बाद ऋषि माण्डव्य यमराज के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा पाप किया था कि मुझे ऐसे झूठे आरोप की सजा मिल रही है। तब यमराज ने कहा कि जब तुम 12 वर्ष के बालक थे, तब तुमने जुगनू की पूंछ में कांटा चुभाया था, जिसके परिणामस्वरूप तुम्हें यह पीड़ा सहन करनी पड़ रही है। उसके बाद ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की आयु में किसी को भी धर्म और अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने एक छोटे से अपराध की इतनी बड़ी सजा दे दी है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शूद्र योनि में दास पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा।
महाभारत में इस रूप में जन्मे यमराज
महाभारत में कथा है कि चित्रांगद और विचित्रवीर्य की असमय मृत्यु हो जाती है। ऐसे में समस्या उत्पन्न होती है कि कुरु वंश का उत्तराधिकारी कौन बनेगा। इसके समाधान के लिए सत्यवती अपने दोनों पुत्रों की पत्नियों अंबिका और अंबालिका को संतान प्राप्ति के लिए अपने ऋषि पुत्र व्यास के पास भेजती है। ऋषि व्यास के साथ दोनों के समागम के कारण एक का पुत्र अंधा और दूसरे का पुत्र बीमार हो गया।
श्राप से हुआ देवता का जन्म
जब सत्यवती को इस बात का पता चला तो उसने अपनी बहुओं को फिर से व्यास के पास जाने को कहा, इस बार अंबिका और अंबालिका ने उनकी जगह अपनी एक दासी को भेजा। व्यास के साथ समागम के कारण दासी भी गर्भवती हो गई और उसने एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया। यह बालक विद्वान और हर तरह से योग्य था। दरअसल ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया था। विदुर कोई और नहीं बल्कि स्वयं यमराज थे, जिन्होंने एक श्राप के कारण मानव रूप में जन्म लिया था।
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