Now Free Sanitary Pads available in all School: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहम फैसले में सभी स्कूलों और शिक्षण संस्थानों को एक खास निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के तहत स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को मुफ्त सैनिटरी पैड देने का आदेश दिया गया है। इसके लिए पैड्स के लिए वेंडिंग मशीन लगाने से लेकर पैड्स के निस्तारण के लिए समुचित व्यवस्था कराने के निर्देश दिए गए हैं। यह आदेश उन सभी स्कूलों के लिए है जहां पर अपर प्राइमरी/सेकेंडरी/हायर सेकेंडरी कक्षाओं में छात्राएं पढ़ती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सभी राज्य सरकारों को छात्राओं की सुरक्षा और स्वच्छता का इंतजाम करना होगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदी वाला की पीठ ने जया ठाकुर की इस जनहित याचिका पर कहा कि सभी राज्य मेंसटुरल पीरियड्स के दौरान स्वच्छता को लेकर अपनी योजना बताएं। अदालत ने राज्य सरकारों को छात्राओं की सुरक्षा और साफ-सफाई का इंतजाम करने के लिए भी कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने माहवारी के दौरान स्वच्छता की अहमियत को एक बड़ा मुद्दा बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह सभी पक्षकारों को शामिल कर देश के स्कूलों में माहवारी को ध्यान में रखते हुए एक समान राष्ट्रीय नीति बनाए। इसके लिए जो भी जरूरी डेटा हो, वह तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जुटाया जाए। बेंच ने इस बात पर भी गौर किया कि केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालयों में माहवारी के दौरान स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं हैं।

केंद्र सरकार की ओर से भारत की एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि वैसे तो स्वास्थ्य सेवा राज्य सूची का विषय है। लेकिन 2011 से इसके लिए केंद्रीय योजनाएं भी हैं। हमने इसके तहत अपनी योजनाएं और उनका पूरा ब्योरा अपने नोट के जरिए कोर्ट को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जुलाई अंत तक स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा छात्राओं की सुविधा और सुरक्षा का ब्यौरा

चीफ जस्टिस की पीठ ने सभी सरकारों से छात्राओं के लिए मासिक धर्म के दौरान सुविधा और सेहत स्वच्छता के लिए बनाई गई योजनाओं पर खर्च होने वाले धन का भी ब्योरा मांगा हैं। राज्य सरकारों को बताना होगा कि उनकी क्या योजना है और वो उन पर केंद्र की राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का कोष खर्च रहे हैं या अपने राजस्व से। इस बात को अब काफी समय बीत चुका हैं अब राज्य सरकारों को बताना होगा कि मासिक धर्म के दौरान छात्राओं की सुविधा और सेहत को लेकर उन्होंने क्या, कहां, कितना और कैसे धन खर्च किया है?

इस कारण हर वर्ष लगभग 2.3 करोड़ लड़कियां छोड़ देती हैं स्कूल

बता दें कि एक सामाजिक संस्था दसरा ने 2019 में माहवारी के कारण स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियों की एक रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 2.3 करोड़ लड़कियां माहवारी के दौरान जरूरी सुविधाएं न होने या सैनिटरी पैड खरीदने के पैसे न होने के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से मुफ्त सैनेटरी पैड, सुरक्षा और स्वच्छता मिलने से स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या में न सिर्फ कम आएगी बल्कि यह समस्या पूरी तरह निदान भी संभव हो सकता है।

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