India News (इंडिया न्यूज), Shekhar Suman Elder Son Death: किसी भी माता-पिता के लिए अपने बच्चे को खोना सबसे बड़ा दुख होता है। यह दर्द इतना गहरा और अवर्णनीय होता है कि यह जीवन को बदलकर रख देता है। एक अभिनेता ने इस तरह का अपार दुख सहा, जब उनके 11 साल के बेटे की मौत हो गई थी। इस दर्दनाक अनुभव ने न केवल उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया, बल्कि उनके विश्वास और धार्मिक भावनाओं को भी हिला कर रख दिया।

शेखर सुमन और उनका 11 साल का बेटा आयुष

हम जिस अभिनेता की बात कर रहे हैं, वह हैं शेखर सुमन। शेखर सुमन ने अपनी पहचान टीवी इंडस्ट्री में होस्टिंग और एक्टिंग के माध्यम से बनाई। वह भंसाली की वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ से अपने करियर में एक नई शुरुआत कर चुके थे। हालांकि, उनके जीवन में जो सबसे बड़ा और सबसे कठिन मोड़ आया, वह था उनके बेटे आयुष की मौत।

आयुष का दिल की बीमारी से लंबा इलाज चल रहा था। शेखर और उनकी पत्नी ने किसी भी कोशिश को छोड़ने का नाम नहीं लिया। वह अपने बेटे के इलाज के लिए लंदन तक गए थे, कई मंदिरों और मजारों में दुआ की, और यहां तक कि शेखर ने बौद्ध धर्म को भी अपनाया, यह उम्मीद करते हुए कि शायद किसी अन्य धर्म में उनके बेटे को इलाज मिल सके।

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बेटे की मौत और भगवान पर से विश्वास उठना

लेकिन जब सभी प्रयासों के बावजूद उनका बेटा आयुष नहीं बच सका, तो शेखर सुमन का विश्वास पूरी तरह से टूट गया। वह इस कदर टूट चुके थे कि उन्होंने घर में भगवान की मूर्तियां बाहर फेंक दीं और मंदिर भी बंद कर दिया। शेखर सुमन ने इस दुख भरे पल को याद करते हुए कहा,

“मैंने सभी मूर्तियां ले जाकर बाहर फेंक दीं। मंदिर बंद कर दिया था। भगवान से मेरा विश्वास पूरी तरह उठ गया। उसने मुझे इतना दर्द दिया, इतना दुख दिया, एक मासूम बच्चे की जान ले ली।”

इस घटना ने शेखर को इतना आहत किया कि वह जीवन से निराश हो गए थे और उनके मन में जीने की इच्छा भी खत्म हो गई थी। यह सब इतना दर्दनाक था कि उन्होंने अपनी सबसे बड़ी सहारा, यानी भगवान, से भी मुंह मोड़ लिया।

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शेखर सुमन का व्यक्तिगत संघर्ष

शेखर सुमन के लिए यह कठिन समय था, और वह इसे खुले तौर पर साझा करते हुए कहते हैं कि किसी भी माता-पिता के लिए अपने बच्चे को खोना कोई कल्पना से परे दुख है। यह न केवल मानसिक बल्कि भावनात्मक और शारीरिक रूप से भी उन्हें तोड़ चुका था। बेटे की मौत ने शेखर के जीवन को एक तरह से बिखेर दिया, और वह कई महीनों तक इस गहरे शोक से उबर नहीं पाए।

उनकी पत्नी, परिवार और करीबी दोस्त उन्हें सहारा देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शेखर के लिए यह इतना बड़ा घाव था कि वह शायद ही कभी उसे भरने के बारे में सोच पाते थे।

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एक दर्दनाक अनुभव और हिम्मत

हालांकि, समय के साथ शेखर ने धीरे-धीरे इस दर्द से निपटने की कोशिश की। उनका व्यक्तिगत संघर्ष आज भी जारी है। हालांकि वह पहले जैसा धार्मिक नहीं रहे, लेकिन शेखर ने जीवन के दूसरे पहलुओं को भी समझने की कोशिश की और इस दर्दनाक अनुभव से गुजरते हुए उन्होंने जीवन को नई दिशा दी।

आज भी शेखर सुमन के मन में अपने बेटे का प्यार और उनकी यादें जीवित हैं, लेकिन वह इस दुख को अपने जीवन की सबसे कठिन परीक्षा मानते हैं। यह दर्द उनका हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके साथ उन्होंने खुद को भी ढूंढने की कोशिश की।

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