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गांव में 7 दिनों तक चलती है परंपरा
India News(इंडिया न्यूज़), Korda Mar Holi : भारत त्योहारों का देश है परंतु कहीं न कहीं आधुनिकता की चादर ने त्योहारों का रंग फीका कर दिया है। फाल्गुन माह में आने वाला रंगों का प्रसिद्ध त्योहार होली भी आधुनिकता के प्रभाव में रंगने लगा है। समाज में बढ़ते अलगाववाद तथा लोगों के केवल खुद तक सीमित हो जाने के कारण पर्व केवल धार्मिक पर्व बनकर रह गया है। परिवार में देवर-भाभी के रिश्ते की मिठास घोलने वाले पर्व के प्रति अब न लोगों में उत्साह दिखाई देता है न ही पर्व को लेकर एक माह पहले शुरू होने वाली चहल पहल कहीं दिखाई देती है जबकि शहरों से तो यह गायब ही हो गई है लेकिन आज भी लोहारू का सेहर गांव प्राचीन परंपरा को जिंदा रखे हुए है।
लोहारू के गांव सेहर गांव में पिछले करीब 300 वर्षों से प्रेम और भाईचारे का प्रतीक होली का त्योहार परंपरागत ढंग से मनाया जाता है। होली के दिन सुबह से ही गांव में देवर-भाभी की होली की तैयारी शुरू हो जाती है। देवर-भाभी के अटूट रिश्ते की मिसाल के रूप में गांव में मनाए जाने वाले इस त्योहार पर गांव की सभी महिलाएं, पुरुष और बच्चे गांव के चौक में एकत्रित हो जाते हैं।
चौक के बीच में एक बड़ी कड़ाही रखकर उसे पानी से भर दिया जाता है। बाद में गांव में रिश्ते में देवर और भाभी लगने वाले महिला और पुरुष कढ़ाई के दोनों और चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं। भाभी के हाथ में दुपट्टे का बनाया हुआ कोरडा और देवर के हाथ में पानी की बाल्टी होती है। दोनों एक दूसरे पर कोरडे और पानी की बरसात करते हैं। इस खेल में जो भी खिलाड़ी मैदान छोड़ देता है वह हारा हुआ माना जाता है। यही नहीं होली के साथ एक परंपरा भी जुड़ी हुई है ग्रामीण बताते हैं इस होली में जिस भी देवर भाभी के बीच जमकर कोड़े बरसाए जाते हैं और पानी की बाल्टी से पानी की बौछारें मारी जाती हैं, उन्हें अगले सीजन की फसल काफी अच्छी मिलती है। ये परंपरा गांव में सात दिनों तक चलती है। गांव में होली खेलते समय कोई व्यक्ति शराब इत्यादि का सेवन नहीं करते तथा हर्बल रंगों का प्रयोग करते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में होली का यह त्योंहार प्रेम और भाईचारे का प्रतीक समझा जाता है सभी लोग सभी वैरभाव भुलाकर इस दिन होली खेलते हैं। हमें अपने पर्वों की परंपरा को नहीं भूलना चाहिए इसके लिए हर शहर और गांवों से युवाओं को आगे आने की जरूरत है युवाओं को आधुनिकता से बाहर निकलकर प्राचीन परंपरा को जीवंत रखने के लिए सकारात्मक पहल करनी होगी तब जाकर हम अपने पर्वों की परंपरा को बनाए रखने में कामयाब होंगे।