प्रवीण वालिया-करनाल, India News (इंडिया न्यूज), Mobile Phobia : परीक्षा परिणाम निकलने के बाद खबर आती है कि अमुक बच्चे ने आत्महत्या कर ली। अमुक छात्रा ने कम नंबर आने पर नहर में कूदकर जान दे दी। इस तरह की खबरें आम हैं। देश के एक प्रतिष्ठित संस्थान में तो अब तक सैकड़ों बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं। बच्चे अकेलेपन की समस्या से गुजर रहे हैं। देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के बच्चे नशे का शिकार हो रहे हैं। कारण प्रेशर बहुत है। आज के दौर में बच्चा जब से जन्म लेता है तब से उस पर प्रेशर रहता है। आज तनाव और स्पर्धा के दौर में बच्चे और युवा लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। Mobile Phobia
- अभिभावकों के टूटे हुए सपनों गला काट स्पर्धा, दूसरों से तुलना ने खत्म कर दिया बचपन
- बच्चों को पैसा कमाने की संवेदनहीन मशीन नहीं बेहतर इंसान बनाएं
- शिक्षा सिस्टम बना रहा है मानसिक रूप से कमजोर, संषर्ष से भागने वाले युवा
Mobile Phobia : बच्चे आठ से दस घंटे देखते हैं मोबाइल पर रील
सबसे अधिक स्टूडेंट्स में असुरक्षा की भावना घर कर रही है। उन पर अभिभावकों की महत्वाकांक्षा गलाकाट स्पर्धा लादी जा रही है। इसमें उनका बचपन और संवेदना खत्म हो रही है। जिस तरह से छह साल से 22 साल तक के स्टूडेंट्स पर मां बाप की महत्वाकांक्षा भारी पड़ती दिख रही है।
75 प्रतिशत स्टूडेंट पर मोबाइल भारी पड़ रहा है। विश्व मेंटल हेल्थ दिवस पर प्रदेश के जाने माने करियर काउंसलर तथा विद्यार्थियों के मनोविज्ञान के विशेषज्ञ मिहिर बैनर्जी से बात की तो उन्होंने कहा कि माता पिता ने बच्चों को इसी तरह से मोबाइल दे दिया हैं। जिस तरह से नशेडी को नशा दे दिया है। बच्चे आठ से दस घंटे मोबाइल पर रील देखते हैं।
Mobile Phobia : आने वाले दिनों में गर्भ अवस्था में डॉक्टर, इंजीनियर प्रबंधक के टीके दिए जाएंगे
उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि दंपत्ति माता पिता तो बन जाते हैं, लेकिन बच्चे के कुशल अभिभावक नहीं बन सकते हैं। आज बच्चे को अपनी महत्वाकांक्षा की कठपुतली या खिलौना बना दिया है। उन्होंने बताया कि बच्चों पर जिस तरह से बच्चों के लिए कक्षा तीसरी से कोचिंग तक दी जा रही हैं, शिक्षा पर जिस तरह से बाजार बना दिया है उसके रहते आने वाले दिनों में गर्भ अवस्था में डॉक्टर, इंजीनियर प्रबंधक के टीके दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि हम रक्तदान तो कर रहे है लेकिन कोई वक्तदान नहीं करता है। Mobile Phobia
आज बच्चे और विद्यार्थी लगातार आत्म हत्या कर रहे
उन्होंने कहा कि मां बाप बच्चे को वक्तदान नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि आज बच्चों की महत्वाकांक्षा के कारण बच्चों का बचपन कब झुलस गया पता ही नहीं चलता है। आज बच्चे और विद्यार्थी लगातार आत्म हत्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक बच्चे और विद्यार्थी कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों से धूप खेल, सामाजिक जीवन खुशी को छीन लिया है। उन्होंने कहा कि डमी एडमिशन के लिए सरकार और स्कूल जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल श्रेय तो लेना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आज शिक्षकों का साइकोलॉजिकल टेस्ट होना चाहिए। Mobile Phobia
Mobile Phobia : आज बच्चों को जड़ों की तरफ ले जाने की जरूरत
उन्होंने कहा कि बच्चों की वेलनेस और शिक्षा के लिए दायित्व तय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि डिप्रेशन के साए में यदि डॉक्टर बनता है तो वह मरीज को बोझ मानता है। उन्होंने कहा कि आज भारत में परिवार को खत्म करने के लिए इंटरनेशनल साजिश की जा रही है। हमारे मूल्य, संस्कृति हमारी धरोहर हैं। उन्होंने कहा कि मां बाप को बच्चों की जड़ों को मजबूत करना चाहिए। उन्होंने बताया कि आज बच्चों को जड़ों की तरफ ले जाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि माता पिता को बच्चों के लिए आदर्श तय करना होगा। आज बच्चों की मनोविज्ञान को समझने के लिए अध्यापक बच्चों के लिए आदर्श बनें। बच्चों को परीक्षा फीवर से बचाएं।
बच्चों को पैसा कमाने की मशीन की बजाए उन्हें इंसान बनाएं
उन पर अपने टूटे हुए सपने नहीं थोंपे। बच्चों को पैसा कमाने की मशीन की बजाए उन्हें इंसान बनाएं। आज शिक्षा के क्षेत्र में नेकसेस काम कर रहा है। जो अपने फायदे के लिए बच्चों को बर्बाद कर रहा है। करोड़ों रुपया कमाने के लिए बच्चों को हथियार बनाया जा रहा है। बच्चों का विकास थम गया है।
यहीं कारण है बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। वह विफलता से मायूस होकर आत्महत्या कर लेते हैं। राजस्थान की एक कोचिंग में हजारों बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं। बच्चों को बड़े शिक्षण संस्थानों में भेड़ बकरियों की तरह भरा जा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों पर उनकी क्षमता से अधिक बोझ लाद रहे हैं। Mobile Phobia