India News (इंडिया न्यूज), Disadvantages of Eating Khesari Lentil: भारतीय समाज में भोजन का विशेष महत्व है और उसमें दालों की भूमिका बेहद अहम होती है। दालें पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, जो शरीर को जरूरी पोषण देती हैं और कई बीमारियों से बचाव भी करती हैं। लंच हो या डिनर, दाल लगभग हर थाली का अनिवार्य हिस्सा होती है। डॉक्टर भी भोजन में दाल शामिल करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी दाल भी है, जो शरीर को पोषण देने की बजाय अपंग बना सकती है?
जी हां, हम बात कर रहे हैं खेसारी दाल की — एक ऐसी दाल जो दिखने में आम दालों जैसी होती है, लेकिन अधिक सेवन करने पर शरीर के निचले हिस्से को सुन्न कर सकती है और स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है।
क्या है खेसारी दाल?
खेसारी दाल का वैज्ञानिक नाम Lathyrus sativus है। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत के खेतों में उगाई जाती है और कम लागत में आसानी से तैयार हो जाती है। इसे गरीबों की दाल भी कहा जाता है, क्योंकि यह अन्य दालों की तुलना में सस्ती होती है।
यह दाल देखने में अरहर जैसी लगती है और इसे छोटी फलियों से निकाला जाता है। हालांकि इसमें पोषण तत्व जैसे प्रोटीन और आयरन भरपूर मात्रा में होते हैं, लेकिन इसमें एक जहरीला तत्व भी पाया जाता है — ODAP (Oxalyldiaminopropionic Acid), जो इंसान के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है।
कैसे करता है यह दाल नुकसान?
खेसारी दाल में मौजूद न्यूरोटॉक्सिन और जहरीले एसिड विशेषकर ODAP, यदि लंबे समय तक और नियमित रूप से खाया जाए, तो यह शरीर के निचले हिस्से को सुन्न कर सकता है। इससे व्यक्ति को चलने-फिरने में परेशानी होती है, और धीरे-धीरे यह स्थायी अपंगता का कारण भी बन सकता है।
हालांकि यह दाल कभी-कभार खाने पर नुकसान नहीं पहुंचाती, लेकिन इसके नियमित सेवन से नर्वस सिस्टम डैमेज होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही, इससे गठिया जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
ODAP की मात्रा और प्रभाव
खेसारी दाल में लगभग 0.15% से 0.35% तक ODAP पाया जाता है। वहीं इसमें 31% तक प्रोटीन भी मौजूद होता है, जो इसे पोषण से भरपूर बनाता है। लेकिन यही ODAP लंबे समय तक सेवन करने पर शरीर को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
इस दाल के फायदे भी हैं
हालांकि खेसारी दाल को पूरी तरह हानिकारक नहीं कहा जा सकता। सीमित मात्रा में और कभी-कभार खाने पर यह कई बीमारियों में लाभदायक सिद्ध हो सकती है:
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पेट की समस्याओं से राहत देती है।
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आंखों के लिए फायदेमंद मानी जाती है।
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त्वचा को प्रदूषण से बचाती है।
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प्रोटीन और आयरन से भरपूर होने के कारण शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
लेकिन यह सब तभी तक फायदेमंद है जब इसका सेवन सीमित मात्रा में किया जाए।
क्यों लगाया गया था प्रतिबंध?
1961 में खेसारी दाल पर प्रतिबंध लगाया गया था, क्योंकि इसके सेवन से लोगों में अपंगता के मामले सामने आने लगे थे। यह दाल न्यूरोलॉजिकल डैमेज का कारण बनी, और इसे स्वास्थ्य के लिहाज से असुरक्षित माना गया।
प्रतिबंध हटाने की मांग और हाल की स्थिति
हाल के वर्षों में खेसारी दाल पर से प्रतिबंध हटाने की मांग उठी है। जनवरी 2015 में ICMR, ICAR, CSIR और FSSAI की विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया कि कम ODAP वाली किस्मों पर प्रतिबंध हटाया जा सकता है।
2016 में भारत सरकार ने घोषणा की कि वह खेसारी दाल पर लगे पांच दशक पुराने प्रतिबंध को हटाएगी, हालांकि इसकी कोई औपचारिक अधिसूचना आज तक जारी नहीं की गई है। महाराष्ट्र राज्य ने इस दाल पर से प्रतिबंध पहले ही हटा दिया है।
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2023 में ब्रिटेन का शोध
फरवरी 2023 में यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं ने खेसारी दाल पर एक ड्राफ्ट जीनोम असेंबली प्रकाशित की, जिसका उद्देश्य ऐसी किस्में विकसित करना है जो:
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कम ODAP युक्त हों
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जलवायु-स्मार्ट हों
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कम इनपुट में अधिक उत्पादन देने वाली हों
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छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित हों
हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि बाजार में उपलब्ध खेसारी दाल की किस्में कम ODAP वाली हैं या नहीं।
खेसारी दाल एक दोधारी तलवार की तरह है — एक तरफ यह सस्ती, पोषक और गरीबों के लिए सुलभ है, तो दूसरी ओर इसका अत्यधिक सेवन शरीर के लिए खतरनाक हो सकता है। यदि सरकार और वैज्ञानिक संस्थाएं मिलकर इस दाल की कम विषैली किस्में विकसित करें और सही जागरूकता फैलाई जाए, तो यह दाल फिर से भोजन का सुरक्षित हिस्सा बन सकती है।
लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक सावधानी जरूरी है — खेसारी दाल को नियमित रूप से खाने से बचें और यदि खरीदते हैं, तो उसकी गुणवत्ता की अच्छी तरह जांच करें।