India News (इंडिया न्यूज), Rheumatic Musculoskeletal Disorders: भारत में रूमेटोलॉजिकल बीमारियों की समस्या तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि देश की लगभग 25% आबादी इन बीमारियों से प्रभावित हो रही है। यह बीमारियां मुख्य रूप से इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी के कारण होती हैं, जो शरीर में सूजन, लगातार दर्द और कई अंगों को लॉन्ग टर्म में नुकसान पहुंचा सकती हैं। यदि इनका सही समय पर निदान और उपचार न हो, तो विकलांगता या कुछ मामलों में जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है।

रूमेटोलॉजिकल बीमारियों के सामान्य प्रकार

नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल के रूमेटोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. बिमलेश धर पांडे के अनुसार, रूमेटॉयड आर्थराइटिस, ल्यूपस और सोरियाटिक आर्थराइटिस जैसी बीमारियां प्रमुख रूप से रिप्रोडक्टिव एज वाली महिलाओं को प्रभावित कर रही हैं।

  • रूमेटॉयड आर्थराइटिस: यह जोड़ों में सूजन और दर्द का कारण बनता है।
  • ल्यूपस: यह बीमारी शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकती है, जैसे त्वचा, जोड़ों, किडनी और हृदय।
  • सोरियाटिक आर्थराइटिस: आमतौर पर सोरायसिस रोग से जुड़ा होता है और यह त्वचा और जोड़ों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

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बीमारी के लक्षण

इन बीमारियों के शुरुआती लक्षणों को पहचानना जरूरी है।

  • जोड़ों में दर्द और सूजन
  • लगातार बुखार
  • वजन का अनियंत्रित रूप से घटना
  • त्वचा पर सोरायसिस जैसे चकत्ते

हालांकि, इन लक्षणों को कई बार नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे बीमारी की पहचान और इलाज में देरी होती है।

ऑटोइम्यून बीमारियों का प्रभाव

डॉक्टर पांडे ने बताया कि ऑटोइम्यून बीमारियों का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही समय पर इलाज शुरू होने से इन्हें मैनेज किया जा सकता है। नियमित दवा और डॉक्टर की सलाह का पालन करना इन बीमारियों के गंभीर प्रभावों को रोकने में मददगार होता है।

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बच्चों पर प्रभाव

चिंता की बात यह है कि इन बीमारियों का असर अब बच्चों में भी बढ़ रहा है। बच्चों में यह बीमारियां लंबे समय तक बनी रहने वाली समस्याओं का कारण बन सकती हैं, जैसे:

  • इंफेक्शन
  • हृदय रोग
  • किडनी डैमेज
  • गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जटिलताएं

बढ़ते शहरीकरण और अन्य कारक

डॉ. पांडे के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण और आनुवंशिक कारकों को इन बीमारियों के प्रमुख कारणों में गिना जा सकता है। इसके अलावा, चिकनगुनिया जैसी वायरल बीमारियों के बाद आर्थराइटिस डेवलप होने का खतरा बढ़ जाता है।

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इलाज में देरी के खतरे

दुर्भाग्यवश, इन बीमारियों का पता अक्सर देरी से चलता है। जब तक मरीज विशेषज्ञ डॉक्टरों तक पहुंचते हैं, तब तक बीमारी गंभीर रूप ले चुकी होती है। इसके परिणामस्वरूप डिफॉर्मिटी और गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

समाधान और जागरूकता की आवश्यकता

रूमेटिक बीमारियों से बचने और इनके प्रभाव को कम करने के लिए जागरूकता बेहद जरूरी है। शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें और समय पर विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क करें। नियमित दवा और फॉलो-अप से मरीजों को लंबे समय तक राहत मिल सकती है।

रूमेटोलॉजिकल बीमारियां शरीर के लिए गंभीर खतरा हो सकती हैं, लेकिन सही समय पर निदान और उपचार से इनका प्रबंधन संभव है। समाज में जागरूकता बढ़ाने और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने से इन बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

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