India News (इंडिया न्यूज), Varanasi News: उत्तर भारत की सबसे कम उम्र की मरीज पर इतनी जटिल हृदय सर्जरी की सफलता ने चिकित्सा जगत में एक नई मिसाल कायम की है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सर सुंदरलाल अस्पताल में डेढ़ वर्ष की बच्ची का हृदय खोलकर राइट एट्रियम से ट्यूमर हटाया गया। इस जटिल सर्जरी को कार्डियक बाईपास तकनीक के तहत बीटिंग हार्ट पर अंजाम दिया गया। यह उपलब्धि मेडिकल साइंस और बीएचयू के डॉक्टरों की कुशलता का अद्भुत उदाहरण है।

बच्ची की बीमारी और उसकी गंभीरता

यह बच्ची विल्म्स ट्यूमर से पीड़ित थी, जिसे आमतौर पर किडनी कैंसर कहा जाता है। ट्यूमर ने वृक्क शिरा से होते हुए इंफीरियर वेना कावा के माध्यम से हृदय के दाहिने अलिंद (राइट एट्रियम) तक विस्तार कर लिया था। इस स्थिति ने सर्जरी को अत्यधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया। महामना कैंसर अस्पताल में कीमोथेरेपी के बाद बच्ची को बीएचयू के बाल शल्य चिकित्सा विभाग में रेफर किया गया।

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सर्जरी की योजना और टीम

सीटीवीएस (कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी) विभाग के प्रो. सिद्धार्थ लखोटिया और बाल शल्य चिकित्सा विभाग के प्रो. वैभव पांडेय ने सर्जिकल प्रबंधन की योजना बनाई। सर्जरी की जटिलता को देखते हुए 20 डॉक्टरों की टीम बनाई गई। टीम में डॉ. अरविंद पांडेय, डॉ. नरेंद्र नाथ दास, डॉ. रुचिरा, डॉ. प्रतिभा राय, डॉ. आरबी सिंह और डॉ. संजीव जैसे विशेषज्ञ शामिल थे।

सर्जरी की प्रक्रिया

सर्जरी दो चरणों में, कुल 10 घंटे में संपन्न की गई:

  1. पहला चरण: इस चरण में ट्यूमर को गुर्दे, लिवर और इंफीरियर वेना कावा से हटाया गया।
  2. दूसरा चरण: कार्डियक बाईपास के तहत हृदय को खोलकर राइट एट्रियम से ट्यूमर हटाया गया। यह प्रक्रिया बीटिंग हार्ट पर ट्रांस-ईसोफेगल ईको द्वारा गाइड की गई।

सर्जरी में विशेष उपकरणों और छोटे आकार के इंस्ट्रूमेंट्स का उपयोग किया गया। निजी अस्पतालों में यह प्रक्रिया लगभग 25 लाख रुपये तक खर्चीली होती, लेकिन बीएचयू में इसे मात्र 60 हजार रुपये में पूरा किया गया।

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सर्जरी की चुनौतियां

  • बच्ची की नाजुक उम्र (डेढ़ वर्ष)
  • ट्यूमर का हृदय और किडनी दोनों तक विस्तार
  • छोटे आकार के उपकरणों और विशेष बाइपास कैथेटर की आवश्यकता
  • लंबे समय तक आईसीयू देखभाल

सर्जरी के बाद की देखभाल और आगे का इलाज

सर्जरी के बाद बच्ची को 14 दिनों तक आईसीयू में विशेष देखभाल में रखा गया। उसकी स्थिति स्थिर होने पर उसे कीमोथेरेपी के लिए वापस महामना कैंसर अस्पताल रेफर किया गया।

यह सर्जरी उत्तर भारत में चिकित्सा क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। बीएचयू के डॉक्टरों ने न केवल चिकित्सा विज्ञान में उत्कृष्टता का परिचय दिया बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए स्वास्थ्य सेवा को सुलभ बनाने का भी उदाहरण प्रस्तुत किया। इस अद्वितीय उपलब्धि से यह स्पष्ट होता है कि समर्पण और टीमवर्क के माध्यम से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

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