India News (इंडिया न्यूज), Guler Paintings: गुलेर लघु चित्रकला को हाल ही में मुंबई में आयोजित नीलामी में जबरदस्त सफलता मिली है। दो पेंटिंग्स को मिलाकर कुल 31 करोड़ रुपये में खरीदा गया, जो इस कला शैली के इतिहास में अब तक की सबसे महंगी पेंटिंग्स रही हैं। इनमें से एक पेंटिंग, जो नैनसुख द्वारा बनाई गई थी, महाराजा बलवंत सिंह की गीत-संगीत महफिल को दर्शाती है, 15 करोड़ रुपये में बिकी। वहीं, उनकी अगली पीढ़ी द्वारा बनाई गई गीत गोविंद पर आधारित पेंटिंग को 16 करोड़ रुपये में खरीदा गया।
कब हुई थी इन पेंटिंग की शुरुआत
गुलेर लघु चित्रकला की शुरुआत 18वीं सदी में राजा गोवर्धन चंद के कार्यकाल में हुई थी, जब गुलेर रियासत में चित्रकला को प्रोत्साहन मिला। इस कला को भारत और विदेशों में अब उच्च कद्र प्राप्त हो रही है, और यह गुलेर के चितेरे नैनसुख की कला का महत्वपूर्ण योगदान है।
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नैनसुख, जो जम्मू के रहने वाले थे, ने कांगड़ा और गुलेर के महाराजाओं के लिए अपनी चित्रकला से प्रसिद्धि प्राप्त की। उनकी पेंटिंग्स में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता था, और इन पेंटिंग्स को बनाने में महीनों का समय लगता था। गुलेर और कांगड़ा चित्रकला में कुछ समानताएँ हैं, लेकिन गुलेर चित्रकला में चेहरे गोलाकार बनाए जाते हैं, जबकि कांगड़ा शैली में चेहरे लंबे होते हैं।
विश्वभर के कला संग्रहालयों में प्रदर्शित की जा रही पेंटिंग्स
गुलेर लघु चित्रकला की पेंटिंग्स आज विश्वभर में कला संग्रहालयों में प्रदर्शित की जा रही हैं, जिनमें लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय, स्विट्जरलैंड का रीटबर्ग संग्रहालय और चंडीगढ़ का राष्ट्रीय कला संग्रहालय प्रमुख हैं। गुलेर चित्रकला को मिल रही पहचान न केवल कला प्रेमियों के लिए, बल्कि इस क्षेत्र के चितेरों के लिए भी गर्व की बात है, जो इस पारंपरिक कला को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं।