India News (इंडिया न्यूज), Aurangzeb Tomb Grave: मुगल बादशाह औरंगजेब की मजार को लेकर राजनीतिक विवाद जारी है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर) के पास खुल्दाबाद में स्थित औरंगजेब की मजार को हटाने की मांग की जा रही है। इसे लेकर नागपुर में हुई हिंसा में दर्जनों वाहन जला दिए गए। पुलिस पर पथराव किया गया, जिसमें कई लोग घायल हो गए। इस मामले में करीब 50 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है। आइए जानते हैं कि औरंगजेब की मजार की सुरक्षा का जिम्मा किसका है? तोड़फोड़ करने पर क्या सजा और दंड है और क्या सरकार को मजार हटाने का अधिकार है?

दरअसल, औरंगजेब की मजार हटाने की मांग के बहाने महाराष्ट्र के नागपुर में ओल्ड भंडारा रोड के पास हंसपुरी इलाके में सोमवार रात (17 मार्च 2025) 10:30 से 11:30 बजे के बीच बेकाबू भीड़ ने 40 से ज्यादा वाहनों में आग लगा दी। घरों और क्लीनिकों में तोड़फोड़ की। इसकी शुरुआत तब हुई जब एक दक्षिणपंथी संगठन के लोग मजार को हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। तभी एक धार्मिक ग्रंथ को जलाने की अफवाह फैली। इससे हिंसा शुरू हो गई।

एएसआई के पास है संरक्षण की जिम्मेदारी

मुगल बादशाह औरंगजेब का मजार दरअसल राष्ट्रीय धरोहर घोषित है और एएसआई इसके संरक्षण की जिम्मेदारी है। संविधान के अनुच्छेद 42, 51 ए (एफ) में धरोहरों के संरक्षण का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार केंद्र सरकार किसी भी धरोहर को राष्ट्रीय महत्व की धरोहर घोषित कर सकती है। एएसआई सभी धरोहरों के संरक्षण की जिम्मेदारी है, प्राचीन धरोहरों का संरक्षण करना देश के सभी लोगों का कर्तव्य है।

हटाने के लिए प्रक्रिया का पालन करना होगा

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के अनुसार, जहां तक ​​सुरक्षा का मुद्दा है, तो यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। राज्य में किसी भी तरह की लूटपाट, आगजनी, तोड़फोड़ आदि से निपटना राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसा करने वालों के खिलाफ राज्य सरकार कार्रवाई कर सकती है। उसे वसूली करने और दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।

महाराष्ट्र में हिंसा से निपटने और औरंगजेब के मकबरे की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महाराष्ट्र सरकार की है। जहां तक ​​एएसआई संरक्षित धरोहर स्थलों को हटाने की बात है तो इसके लिए एक प्रक्रिया है। इन्हें एएसआई प्रक्रिया के जरिए ही हटाया जा सकता है।

तोड़फोड़ और आगजनी में ऐसी सजा का प्रावधान

अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के अनुसार भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में किए गए प्रावधान के तहत तोड़फोड़ और आगजनी जैसे मामलों में कम से कम एक साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। इसमें अधिकतम पांच साल की कैद और जुर्माना लगाया जा सकता है। इसमें नुकसान की गंभीरता के आधार पर फैसला लिया जाता है।

इन धाराओं के तहत होगी कार्रवाई

बीएनएस की धारा 189 के तहत अवैध रूप से एकत्र होने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। इसी तरह बीएनएस की धारा 190 के तहत अवैध रूप से एकत्र होने वालों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा धारा 115 का इस्तेमाल दंगे में चोट पहुंचाने, धारा 103 का इस्तेमाल दंगे के दौरान हत्या करने, धारा 61 का इस्तेमाल दंगे की योजना बनाने वालों के खिलाफ किया जाता है। बीएनएस की धारा 299 का इस्तेमाल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए किया जाता है।

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दंगा करना गैर जमानती अपराध

ऐसे मामलों में बीएनएस की धारा 191 (1) (2) (3) के तहत सजा दी जा सकती है। अगर किसी गैरकानूनी सभा में कोई हिंसा होती है तो उस सभा में शामिल सभी सदस्यों को दोषी मानकर सजा सुनाई जा सकती है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 191 दंगा करने को बहुत गंभीर अपराध मानती है। यह एक संज्ञेय अपराध है, जिसमें पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर सकती है। इसके अलावा यह गैर जमानती अपराध है। इसमें आरोपी को गिरफ्तारी के बाद जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता।

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धारा 191(2) में बताया गया है कि साधारण दंगा करने के अपराध की सजा क्या होगी। अगर दंगे के दौरान किसी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तो दोषियों को दो साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। इसी तरह, बीएनएस की धारा 191 (3) में कहा गया है कि अगर दंगे के दौरान गैरकानूनी सभा में शामिल लोग किसी घातक हथियार से हमला करने के दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें पांच साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।