India News (इंडिया न्यूज), Modi Government On Muslims : पहले नागरिकता संशोधन कानून (CAA), फिर तीन तलाक का खात्मा और उसके बाद समान नागरिक संहिता (UCC) पर केंद्र सरकार काम कर रही है. 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने ऐसे बड़े फैसले लिए हैं, जिनका सीधा संबंध मुस्लिम समुदाय से है. इन सभी फैसलों को लेकर देशभर में काफी बवाल मचा हुआ है. ऐसा ही कुछ वक्फ बिल को लेकर भी हो रहा है। मुसलमान इस बिल को अपने खिलाफ बता रहे हैं। CAA और UCC के समय देश के कई हिस्सों में काफी हिंसा हुई थी. इन सभी फैसलों को लेकर भारत के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने इन्हें धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान के लिए खतरा बताया था। इसमें मुस्लिम संगठनों को विपक्ष का पूरा समर्थन हासिल था। लेकिन विरोध, हिंसा और विपक्ष के आक्रामक होने के बावजूद मोदी सरकार इन फैसलों पर पीछे नहीं हटी। और कहा कि ये फैसले सुधार और समानता की दिशा में उठाए गए कदम हैं।
तीन तलाक खत्म करने का फैसला
सबसे पहले बात करते हैं तीन तलाक की, 28 दिसंबर 2017 को तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 पेश किया था। इस विधेयक के बारे में भाजपा ने कहा था कि इसका उद्देश्य तीन तलाक को अवैध घोषित करना है। यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें उनके पतियों द्वारा मनमाने ढंग से तलाक दिए जाने से बचाने के लिए था।
सरकार द्वारा लाए गए विधेयक में ऐसा करने वाले पति को 3 साल तक की सजा का प्रावधान था। आपको बता दें कि 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, जिसके बाद सरकार ने इसे अपराध घोषित करने के लिए कानून बनाया। जुलाई 2019 में यह विधेयक कानून बन गया।
आपको बता दें कि इस कानून के खिलाफ मुस्लिम संगठनों ने काफी विरोध प्रदर्शन किया था। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने कहा था कि यह कानून मुस्लिम परिवारों को तोड़ने वाला है।ओवैसी ने संसद के अंदर और बाहर इसका विरोध किया था।
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए)
तीन तलाक के बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम लाया गया था। दिसंबर 2019 में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करना था। इस कानून के दायरे से मुसलमानों को बाहर रखा गया था। मुसलमानों ने इसे लेकर इसका विरोध किया और इस कानून को विभाजनकारी और भेदभावपूर्ण बताया। इसे लेकर देश में काफी हिंसा भी हुई। सीएए 9 दिसंबर 2019 को पेश किया गया और 11 दिसंबर 2019 को पारित हुआ।
सरकार का तर्क था कि यह कानून धार्मिक उत्पीड़न से पीड़ित अल्पसंख्यकों को आश्रय प्रदान करने के लिए है न कि मुसलमानों के खिलाफ। इस कानून के कारण किसी की नागरिकता नहीं जाएगी। इस कानून के विरोध में मशहूर शाहीन बाग आंदोलन हुआ, जो कई महीनों तक चला।
समान नागरिक संहिता (यूसीसी)
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की बात करें तो यह शुरू से ही भाजपा का अहम एजेंडा रहा है। भाजपा अपने घोषणापत्र में भी इसका जिक्र करती रही है। आपको बता दें कि यूसीसी अभी केंद्रीय स्तर पर कानून नहीं बन पाया है, लेकिन मोदी सरकार ने इसे लागू करने की मंशा जाहिर की है। भाजपा शासित उत्तराखंड में यूसीसी लागू हो चुका है। जबकि गुजरात इस कानून को लागू करने की तैयारी कर रहा है। सीएम भूपेंद्र पटेल ने इस कानून की जरूरत का आकलन करने के लिए वहां एक समिति बनाई है।
यूसीसी की बात करें तो इसमें सभी धर्मों के लिए एक समान पर्सनल लॉ (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि) की बात की गई है। सरकार का तर्क है कि यूसीसी लैंगिक समानता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगा। संविधान के अनुच्छेद 44 में भी इसका जिक्र है। इसे लेकर मुस्लिम संगठनों खासकर एआईएमपीएलबी ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) पर हमला बताया है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025
इन सभी फैसलों के बाद मोदी सरकार वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 लेकर आई है। अगस्त 2024 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया यह विधेयक वक्फ बोर्ड के प्रबंधन और संपत्तियों में सुधार के लिए है, इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, संपत्ति सर्वेक्षण और पारदर्शिता जैसे प्रावधान हैं। इस विधेयक को लेकर सरकार ने तर्क दिया है कि इस कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार और दुरुपयोग को रोकना है साथ ही महिलाओं और पिछड़े मुसलमानों को लाभ पहुंचाना है। वहीं, एआईएमपीएलबी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने इसे वक्फ की स्वायत्तता पर हमला बताया है।