India News (इंडिया न्यूज), Chandrababu Naidu Leadership: चंद्रबाबू नायडू का राजनीतिक सफर एक दिलचस्प और हैरान करने वाली कहानी है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपनी रणनीतियों से राजनीति में बड़ा बदलाव किया। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि नायडू ने अपने ही ससुर एनटी रामा राव को सत्ता से हटाकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा कर लिया।
2024 में चंद्रबाबू नायडू ने एक साथ दो धमाके किए जिससे पूरे देश में हलचल मच गई। 4 जून 2024 को लोकसभा और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए, जिसमें टीडीपी ने 25 में से 16 सीटें जीतीं और विधानसभा चुनाव में 175 में से 135 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया।
न होते नायडू तो क्या करती भाजपा?
विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद चंद्रबाबू नायडू के सामने मुख्यमंत्री की कुर्सी थी, वहीं केंद्र से उन्हें खास ऑफर मिलने की भी संभावना थी। हालांकि, लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रही और उसे 32 और सांसदों की जरूरत थी, इसलिए चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार सरकार के अहम सहयोगी बन गए।
भाजपा ने लोकसभा में 240 सीटें जीतीं, लेकिन बहुमत से दूर रही। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की टीडीपी और जेडीयू ने मोदी सरकार का समर्थन किया। इसके साथ ही मोदी 3.0 सरकार इन दोनों दलों के समर्थन से मजबूती से चल रही है। यह बदलाव नायडू की रणनीतिक स्थिति को दर्शाता है।
चंद्रबाबू नायडू का मजबूत स्टैंड
हाल ही में चंद्रबाबू नायडू तब चर्चा में आए थे, जब उन्होंने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर केंद्र सरकार से अलग रुख अपनाया था। उन्होंने कहा था कि इस पर कोई भी फैसला सभी दलों से चर्चा के बाद ही लिया जाएगा।
जब केंद्र में नई मोदी सरकार बन रही थी, तब मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के बीच कई दौर की चर्चा हुई थी। इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से आंध्र प्रदेश को दिए जाने वाले 15,000 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज को लेकर भी सवाल उठे थे। इन मुद्दों पर नायडू का अलग रुख पार्टी की राजनीतिक ताकत को और मजबूत करता है।
भाजपा के लिए बंद हो गए थे दरवाजे
यह घटना बहुत पुरानी नहीं है, जब 2019 में अमित शाह ने कहा था कि चंद्रबाबू नायडू के लिए एनडीए के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। उस समय नायडू दिल्ली गए थे और अमित शाह से मिलने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन उन्हें मिलने का समय नहीं मिला। यह एक ऐसा मोड़ था, जहां चंद्रबाबू नायडू और बीजेपी के बीच दूरियां बढ़ गईं।
आज वे वही चंद्रबाबू नायडू हैं, जिनके लिए बीजेपी लाल कालीन बिछाती है। यह बदलाव दिखाता है कि एक साल में उनकी और उनकी पार्टी की किस्मत कैसे बदल गई। आज नायडू की राजनीतिक स्थिति इतनी मजबूत हो गई है कि वे दिल्ली में बैठकर केंद्र सरकार को हिला सकते हैं। उनकी रणनीतियों और कुशल नेतृत्व का नतीजा आज दिख रहा है।