अजीत मैंदोला, नई दिल्ली:
(Congress’s Dalit Face Bets On Channi)
कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब में अमरेन्द्र सिंह की जगह दलित चेहरा चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना बड़ा दांव खेला है। एक तरह से पंजाब में कांग्रेस का चेहरा बदलने की कोशिश की है। कांग्रेस का यह दांव कितना सही होगा इसका पता चार माह बाद होने वाले चुनाव के परिणाम बताएंगे। लेकिन चन्नी ओर कांग्रेस दोनों के लिये पंजाब बड़ी चुनोती बनने जा रहा है। खासतौर पर नव नियुक्त मुख्यमंत्री चन्नी के लिए। क्योंकि चन्नी भी उन नेताओं में थे जिन्होंने अमरेन्द्र सिंह जैसे ताकतवर नेता के खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी। आज चन्नी का नाम भी नाटकीय ढंग से सामने आया। उम्मीद की जा रही थी कि नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी को मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। सुखजिंदर सिंह रन्धावा का नाम जोर शोर से चलाया गया। लेकिन राहुल गांधी ने दलित सिख नेता चन्नी के नाम को हरी झंडी दे बड़ा दांव खेल दिया। अब चन्नी के सामने भी वही सब चुनोतियां होंगी जिनको लेकर अमरेन्द्र सिंह की खिलाफत की जा रही थी। उन्हें सब को साथ ले कर चलने के साथ साथ चार माह में सारे वायदे पूरे करने होंगे। क्योंकि अमरेन्द्र सिंह ने इस्तीफा देने के बाद जो तेवर दिखाये हैं उनसे साफ है कि वह चुप नही बैठेंगे। खास तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर उन्होंने जो बोला है वह कांग्रेस के लिए बड़ी परेशानी खड़ी करने वाला है। बीजेपी ने मौका देख कांग्रेस पर हमला भी बोल दिया है।

2017 से थी राहुल और अमरेन्द्र में तनातनी!

इसमें कोई दोराय नही है कि अमरेन्द्र सिंह देर सवेर पार्टी छोड़ेंगे। यह देखना भर है कि वह अपनी नई पार्टी बनाते हैं या बीजेपी को मजबूती देते हैं। अमरेन्द्र यूं भी अब कांग्रेस में रह नही पाएंगे। क्योंकि उनकी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से बनती ही नहीं है। पिछली बार वह मुख्यमंत्री भी सोनिया गांधी की वजह से बने थे। जबकि राहुल उनके कतई पक्ष में नहीं थे। यूं कहा जा सकता है कि 2017 से ही राहुल और अमरेन्द्र के बीच में तनातनी शुरू हो चुकी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार ने पंजाब में बदलाव को रोक दिया था। वर्ना राहुल गांधी सिद्धू को तभी मुख्यमंत्री बना देते।

अमरेंद्र के खिलाफ सिद्धू का साथ दिया रन्धावा और चन्नी ने

2019 की करारी हार ने राहुल के कई सारे फैसलों को करने से रोक दिया था। क्योंकि उन्होंने खुद ही अध्य्क्ष पद छोड़ पार्टी को संशय में डाल दिया। पार्टी लोकसभा का चुनाव पंजाब को छोड़ बाकी जगह बुरी तरह हारी। इससे अमरेन्द्र सिंह मजबूत जरूर हुए लेकिन सिद्धू राहुल के ओर करीब हो गए। क्योंकि सिद्धू अकेले नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर सबसे ज्यादा हमले बोले थे। राहुल और प्रियंका के करीब आते ही सिद्धू ने अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ खुल कर मोर्चा खोल दिया। उनका साथ दिया रन्धावा और चन्नी जैसे नेताओं ने। 2019 के आखिर में राहुल ने सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने का फैसला कर लिया था। लेकिन अमरेन्द्र सिंह अड़ गए। 2020 आते कोरोना आ गया। इस बीच मध्य्प्रदेश की सरकार चली गई। लेकिन पंजाब में खींचतान बढ़ती चली गई।

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सिद्धू खुलकर मैदान में आये

सिद्धू खुलकर मैदान में आये तो अमरेन्द्र सिंह भी अपने तरीके से जवाब देते रहे। धीरे धीरे बात बढ़ती गई। आखिर में जब सिद्धू को प्रदेश की कमान सौपी गई तभी से तय हो गया था पंजाब में कुछ बड़ा होगा। राहुल और प्रियंका के समर्थन के सिद्धू चुप चाप अपने तरीके से सक्रिय हो गए। अमरेन्द्र सिंह को लगा कि उनके खिलाफ कुछ नही होगा। लेकिन सिद्धू ने 40 से ऊपर विधायकों का पत्र चुपचाप आलाकमान को भिजवा विधायक दल की बैठक की मांग मनवा ली। गोपनीय तरीके से सारा काम हुआ। सुबह 8 बजे अमरेन्द्र सिंह को बैठक का पता चला। तब तक विधायकों को लग गया था बाजी पलट गई। सो अमरेन्द्र सिंह ने भी सूझबूझ से काम ले पार्टी से इस्तीफा देने के बजाए मुख्यमंत्री पद छोड़ा।

नरम नहीं पड़ने वाले हैं अमरेंद्र

इस्तीफा देने के बाद अमरेंद्र ने प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू को निशाना बना उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं खत्म की। यहां तक कि सिद्धू अपने समर्थक को भी सीएम नहीं बना पाए। चन्नी को मुख्यमंत्री बनाये जाने से अमरेन्द्र सिंह कांग्रेस को लेकर नरम नहीं पड़ने वाले हैं। इतना भर होगा कि चन्नी को सीधे निशाने पर लेने के बजाए सिद्धू उनके निशाने पर होंगे। पाकिस्तान से सिद्धू के रिश्ते ओर सीमावर्ती राज्य की आंतरिक सुरक्षा को लेकर अमरेन्द्र कांग्रेस पर हमला बोलते रहेंगे। अमरेन्द्र की लड़ाई अब सिद्धू के साथ साथ सीधे राहुल गांधी से होगी। अब यह देखना होगा कि कांग्रेस में रह कर वह कब तक नुकसान पहुंचाएंगे या बाहर जाएंगे।

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