देवउठनी एकादशी कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक अन्न ग्रहण नहीं करते थे, न ही कोई अन्न बेचता था। एक बार की बात है भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने के लिए सुंदरी का धर लिया और सड़क किनारे बैठ गए। राजा वहां से गुजरे तो सुंदरी से उसके यहां बैठने का कारण पूछा स्त्री ने बताया कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं वह बेसहारा है राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम मेरी रानी बनकर मेरे साथ मेरे महल चलो।

सुंदरी के भेष में श्रीहरि ने राजा के सामने रखी ऐसी शर्त

सुंदरी ने राजा की बात स्वीकार ली लेकिन एक शर्त रखी कि राजा को पूरे राज्य का अधिकार उसे सौंपना होगा और जो वह बोलेगी, खाने में जो बनाएगी उसे मानना होगा राजा ने शर्त मान ली अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर आपने यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी।

विष्णु की परीक्षा में पास हुए राजा

राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई राजकुमार ने भी पिता को धर्म न छोड़ने को कहा और खुशी-खुशी अपने सिर की बलि देने के लिए राजी हो गए राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि ये तुम्हारी परीक्षा थी और तुम इसमे पास हो गए श्रीहरि ने राजा से वर मांगने को कहा राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ (भगवान विष्णु जिस लोक में निवास करते हैं) की प्राप्ति हुई।

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