India News (इंडिया न्यूज),Holi 2025: देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में होली का जश्न शुरू हो गया है। गुरुवार को देशभर में पूरे विधि-विधान के साथ बुराई की प्रतीक होलिका का दहन किया जाएगा। इस दौरान भगवान नारायण की पूजा की जाएगी। इसके साथ ही रंगों की होली का दौर शुरू हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार होलिका दहन कब और कहां हुआ था? अगर नहीं, तो इस संदर्भ में हम आपको बताने जा रहे हैं। वो स्थान है बिहार का पूर्णिया। इसी पूर्णिया में आज भी वो स्थान मौजूद है, जहां भक्तराज प्रह्लाद के आह्वान पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे। ये वो स्थान है, जहां प्रह्लाद की बुआ होलिका का दहन हुआ था।

यह प्रसंग श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण में मिलता है। श्रीमद्भागवत में भगवान के अवतार के संदर्भ में कथा है कि असुर राज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त राज प्रह्लाद को भगवान नारायण से शत्रुता करने के लिए समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना। परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को गोद में बैठाया और चिता में आग लगवा दी। चूंकि होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, इसलिए सभी ने सोचा कि अब प्रह्लाद मारा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। होलिका खुद चिता की आग में जल गई और भक्तराज सुरक्षित बच गया।

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प्रह्लाद के आह्वान पर भगवान नारायण प्रकट हुए थे

तब से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हर साल पूरे देश में होलिका दहन की परंपरा शुरू हो गई। होलिका की चिता जलाने का स्थान बिहार के पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में है। यही वह स्थान भी है जहां प्रह्लाद के आह्वान पर भगवान नारायण नरसिंह के रूप में प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप का वध किया था। जिस स्तंभ से भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे, उसके अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं। हिरण्यकश्यप के महल के अवशेष भी यहां मौजूद हैं। हर साल होली के अवसर पर यहां राजकीय समारोह आयोजित किया जाता है और विशाल होलिका दहन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर यहां कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

1911 में प्रकाशित गजेटियर में उल्लेख

यहां मौजूद स्तंभ के अवशेषों की चर्चा ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले पेपर क्विक पेजेज द फ्रेंडशिप इनसाइक्लोपीडिया में भी की गई थी। इसके अलावा 1911 में प्रकाशित गजेटियर में इसका उल्लेख है. इसमें इसे माणिक खंभा कहा गया है। पूर्णिया जिला मुख्यालय से करीब 32 किमी दूर एनएच 107 के किनारे बनमनखी अनुमंडल के धरहरा स्थित सिकलीगढ़ भगवान नरसिंह का अवतार स्थल है। यहां एक स्तंभ है जो एक निश्चित कोण पर झुका हुआ है। स्तंभ का अधिकांश हिस्सा जमीन के अंदर दबा हुआ है और इसकी लंबाई करीब 1411 इंच है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रह्लाद स्तंभ के पास की गई खुदाई में पुरातात्विक महत्व के सिक्के मिले थे। इसके बाद से स्थानीय प्रशासन ने इसके आसपास खुदाई पर रोक लगा दी है।

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