India News (इंडिया न्यूज),Pakistani Army: एक समय पर पाकिस्तान की सेना इतनी मजबूत होती थी जिसका मुकाबला करना भी बहुत मुश्किल होता था, वहीँ पाक की सेना को पहले पेशेवर सेना के रूप में भी देखा जाता था। लेकिन अब हालात ऐसे हैं की इस सेना को रोज़ाना धर्म की घुट्टी में डुबो दिया जाता है। ताकि उनके दिमाग में दूसरे धर्मों के प्रति नफ़रत भर जाए। क्या आपने कभी जिया-उल-हक का नाम सुना है। ये वो दौर है जिसके बाद पाकिस्तान की सेना ‘इस्लामिक सेना’ में तब्दील हो गई है, जहाँ हर सैनिक और अधिकारी को धर्म की घुट्टी पिलाई गई है। इसका असर अब पाकिस्तान की नागरिक और सैन्य नीतियों दोनों में देखा जाता है।
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इस तरह बनी ‘इस्लामिक सेना’
आपकी जानकारी के लिए बता दें, पाकिस्तानी सेना का गठन 1947 में भारत के विभाजन के साथ ही हो गया था। कहा जाता है कि, शुरुआत में यह ब्रिटिश भारतीय सेना की तर्ज पर एक प्रोफेशनल सेना हुआ करती थी। इस दौर में पाक की सेना में धर्म को औपचारिक रूप से ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। वहीँ आज़ादी के बाद, शुरुआती दो दशकों यानी 1971 के आसपास तक पाकिस्तानी सेना तटस्थ और पेशेवर रही, लेकिन पाकिस्तान का गठन इस्लाम के आधार पर हुआ था। जब पाक एक इस्लामिक राज्य बन गया तब से ही पाक की सेना को इस्लाम की घुट्टी पिलाई जाने लगी।
इस तरह आतंकवाद का हुआ जन्म
आपकी जानकारी के लिए बता दें, पाकिस्तानी सेना में धार्मिक शिक्षा का असली दौर जनरल जिया-उल-हक के दौर में शुरू हुआ। 1977 में जब जिया ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को हटाकर सत्ता अपने हाथों में ली, तो उन्होंने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए धर्म का सहारा लेकर “इस्लामीकरण” की नीति अपनाई। यह नीति जिया के बाद भी जारी रही। पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में आतंकवाद को ‘इस्लामिक जिहाद’ का रूप देकर धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल किया। आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन बनाए, जिनके प्रशिक्षण शिविरों में धार्मिक कट्टरता पैदा करना एक अहम एजेंडा बन गया। अब धर्म पाकिस्तानी सेना का एक अहम पहलू बन गया है। इसमें मुख्य रूप से भारत के खिलाफ जहर घोला जाता है। यह काम धार्मिक विद्वान और मौलवी मिलकर करते हैं।