India News (इंडिया न्यूज),Wakf Amendment Act:वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हलचल मची हुई है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बवाल मचा हुआ है। मुर्शिदाबाद में जमकर हिंसा हुई। खून-खराबा हुआ। हालांकि, बीएसएफ ने मोर्चा संभाल लिया है। अब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस जमीनी हकीकत जानने मुर्शिदाबाद जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता के आग्रह को दरकिनार करते हुए राज्यपाल बोस मुर्शिदाबाद के दौरे पर हैं। यहां वे जमीनी हालात का जायजा लेंगे। मुर्शिदाबाद में कानून-व्यवस्था की स्थिति देखेंगे। पीड़ितों से मिलेंगे। उनकी बात सुनेंगे और खुद अपनी आंखों से देखेंगे कि असल में क्या हुआ था। मुर्शिदाबाद में उन्होंने जो देखा, उसके आधार पर वे एक रिपोर्ट तैयार करेंगे। अगर उनकी रिपोर्ट में कानून-व्यवस्था की गंभीर खामियां पाई गईं तो क्या होगा? क्या राज्यपाल की खराब रिपोर्ट की वजह से ममता सरकार गिर सकती है? आखिर राज्यपाल के पास क्या-क्या अधिकार हैं?
तीन लोगों की मौत
दरअसल, मुर्शिदाबाद 8 अप्रैल से ही हिंसा की आग में जल रहा है। 11 अप्रैल को वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन और भी हिंसक हो गया था। उस हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। मुर्शिदाबाद के सुती, धुलिया, समरसेरगंज और जंगीपुर जैसे इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी। इस दौरान तोड़फोड़, आगजनी और पथराव देखने को मिला था। भाजपा का दावा है कि वक्फ पर हुई हिंसा के कारण करीब 500 हिंदू परिवार पलायन करने को मजबूर हो गए हैं और मालदा में शरण ले रहे हैं। भाजपा ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। वहीं, कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर मुर्शिदाबाद में केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात हैं।
ममता बनर्जी ने की थी ये अपील
हालांकि, अब मुर्शिदाबाद में तनाव कम होने लगा है। यही वजह है कि राज्यपाल बोस आज हालात का जायजा लेने मुर्शिदाबाद पहुंचे हैं। इस दौरे से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनसे कुछ दिन इंतजार करने की अपील की थी, लेकिन राज्यपाल ने हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करने का मन बना लिया था। वे आज पहुंच भी गए। राज्यपाल बोस मुर्शिदाबाद में हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे और स्थिति का जायजा लेंगे। हालात का अवलोकन करने के बाद वे अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेंगे। अगर उनकी रिपोर्ट में पाया जाता है कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह विफल रही है, तो राज्यपाल अपनी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र से राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लगाने की सिफारिश कर सकते हैं।
राज्यपाल की शक्तियां
भारत के संविधान ने राज्य के राज्यपाल को बहुत सारी शक्तियां दी हैं। राज्यपाल के पास इतनी शक्तियां होती हैं कि वह सरकारें भी गिरा सकता है। आइए मुर्शिदाबाद की घटना के बहाने इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
- रिपोर्ट भेजने का अधिकार (अनुच्छेद 356): अगर राज्यपाल को लगता है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है या कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो गई है तो वह केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज सकता है। इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार राष्ट्रपति से राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकती है। इसके बाद राज्य सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है और विधानसभा को निलंबित या भंग किया जा सकता है।
- राज्य की कानून व्यवस्था की निगरानी: राज्यपाल को राज्य की कानून व्यवस्था की निगरानी करने और केंद्र को सूचित करने का पूरा अधिकार है। मुर्शिदाबाद हिंसा जैसे मामलों में अगर राज्यपाल की रिपोर्ट में गंभीर अनियमितताएं या खामियां सामने आती हैं तो यह केंद्र के लिए राज्य में हस्तक्षेप करने का आधार बन सकता है।
- विशेष परिस्थितियों में हस्तक्षेप: सभी जानते हैं कि किसी भी राज्य में राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है। अगर राज्यपाल को लगता है कि राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रही है तो वह केंद्र को कार्रवाई करने की सलाह दे सकता है।
- विधेयकों पर हस्ताक्षर करना या रोकना: राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने, रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार है। इसका उदाहरण कर्नाटक से समझा जा सकता है, जहां राज्यपाल ने मुस्लिम आरक्षण की फाइल राष्ट्रपति के पास भेज दी है।
ममता सरकार पर खतरा ?
अब सवाल यह है कि क्या वाकई राज्यपाल की रिपोर्ट पर ममता सरकार गिर सकती है? सीधे शब्दों में कहें तो यह इतना आसान नहीं लगता। किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है। इसके लिए कई शर्तें पूरी होनी चाहिए।
- जैसे राज्यपाल की रिपोर्ट में यह साफ होना चाहिए कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था पूरी तरह से विफल हो गई है।
- केंद्र सरकार को यह रिपोर्ट संसद में पेश करनी होगी। फिर इसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी लेनी होगी।
- सुप्रीम कोर्ट भी इस प्रक्रिया की समीक्षा कर सकता है। एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार (1994) के मामले में यह तय हुआ था।
- यही वजह है कि अब सबकी निगाहें राज्यपाल की ओर से तैयार की जाने वाली रिपोर्ट पर टिकी हैं।