India News (इंडिया न्यूज), Justice Oka Admits Mistake: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस ओका ने बेहद चौंकाने वाला बयान दिया है। दरअसल, उन्होंने अपने एक गलत फैसले पर टिप्पणी की है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि जज भी इंसान होते हैं और फैसले देते वक्त उनसे भी गलतियां हो सकती हैं। उन्होंने खुले तौर पर माना कि 2016 में जब वे बॉम्बे हाई कोर्ट के जज थे, तब उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम की व्याख्या में गलत फैसला दिया था। जस्टिस ओका ने कहा कि जजों के लिए सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती और उन्हें अपनी गलतियों को सुधारने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
क्या था वो फैसला?
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पीड़ित महिला मुआवजे या अन्य राहत के लिए मजिस्ट्रेट के पास आवेदन कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हाई कोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत ऐसे आवेदनों को खारिज करने का अधिकार है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हाई कोर्ट को इस अधिकार का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर और सावधानी से करना चाहिए। हस्तक्षेप तभी करना चाहिए, जब मामला पूरी तरह से अवैध हो या कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा हो।
जस्टिस ओका ने क्या कहा?
जस्टिस ओका ने कहा कि 2016 में बॉम्बे हाई कोर्ट में दिए गए एक फैसले में उन्होंने कहा था कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत किसी आवेदन को खारिज करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। लेकिन बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने इस दृष्टिकोण को गलत करार दिया। जस्टिस ओका ने कहा कि अपनी गलतियों को स्वीकार करना और उन्हें सुधारना हमारा कर्तव्य है। जजों के लिए भी सीखना एक सतत प्रक्रिया है।
इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है। अगर हाई कोर्ट बिना सोचे-समझे ऐसे आवेदनों को खारिज करता रहेगा तो इस कानून का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। कोर्ट ने हाई कोर्ट से अपील की कि वह ऐसे मामलों में संयम बरते और हस्तक्षेप से बचें, ताकि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सके।