India News (इंडिया न्यूज), Karnataka politics: कांग्रेस के नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता अक्सर जातिगत सर्वेक्षण की बात करते हैं। देश में ऐसा कोई मंच नहीं है जहां से राहुल गांधी ने जातिगत सर्वेक्षण कराने की बात न की हो। यहां तक कि जहां जाति पर बात करना जरूरी नहीं है, वहां भी वे जातिगत सर्वेक्षण का झंडा बुलंद करते हैं। दरअसल राहुल जब भी जातिगत जनगणना की बात करते हैं, तो उनका निशाना पिछड़ी जातियां होती हैं। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद से ही देश का मंडलवादी नेतृत्व जातिगत सर्वेक्षण की बात कर रहा है। राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने का सबसे बड़ा कारण पिछड़े लोगों का पार्टी के साथ न आना था।
अभी कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी ने अपना दर्द बयां किया था कि हम सवर्ण, दलित और मुसलमान बोलते रहे और पिछड़ी जातियां कांग्रेस से अलग हो गईं। जातिगत सर्वे के पीछे राहुल की मंशा साफ है कि वह खुद को ओबीसी जातियों का हितैषी साबित करना चाहते हैं। लेकिन कर्नाटक में उनकी मंशा सफल होती नहीं दिख रही है। अगर यहां हालात बिगड़ते हैं तो कांग्रेस को राहुल गांधी के इस अभियान को रोकना पड़ेगा। दरअसल, कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा पेश की गई जातिगत सर्वे रिपोर्ट राज्य इकाई में अंदरूनी खींचतान की वजह बन गई है।
1- वोक्कालिगा और लिंगायत जातियों का संकट
राज्य में पिछड़ी जातियों के लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं में राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर चिंता देखी जा रही है। दरअसल, ये दोनों जातियां नाम से पिछड़ी जातियां हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से काफी जागरूक हैं। इतना ही नहीं, समाज में इन लोगों की मजबूत स्थिति है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में इस्तेमाल किए गए आंकड़ों पर कुछ नेताओं की आपत्तियों और कुरुबा समुदाय को मिलने वाले बढ़े लाभ पर ओबीसी नेताओं की आपत्तियों के बीच राज्य कांग्रेस नेताओं में जबरदस्त असंतोष है।
13 अप्रैल को राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत कर्नाटक जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 69.6% आंकी गई है, जो मौजूदा अनुमान से 38% अधिक है। राज्य में ओबीसी आरक्षण की III A और III B श्रेणियों के तहत आरक्षण पाने वाले वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों की आबादी क्रमशः 12.2% और 13.6% पाई गई है। अब तक यह समझा जा रहा था कि राज्य में वोक्कालिगा 17% और लिंगायत लगभग 15% हैं। रिपोर्ट में II B श्रेणी के तहत आरक्षण में 4 प्रतिशत अंकों की वृद्धि की सिफारिश की गई है, जिससे वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के लिए आरक्षण का लाभ 3 प्रतिशत अंकों तक बढ़ने का रास्ता खुल गया है। दरअसल, पिछड़ी जातियों के नेता अजीबोगरीब अधर में फंस गए हैं। आयोग जाति सर्वेक्षण में कम आबादी के कारण उनकी जाति का आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश कर रहा है। लेकिन अगर जातियों की संख्या कम पाई गई तो पार्टियों को टिकट वितरण में अपनी सीटें कम करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी इस समस्या से जूझ रही है कि दशकों से कर्नाटक की राजनीति पर हावी रहे समुदायों को कैसे नाराज़ किया जाए। 224 सदस्यीय राज्य विधानसभा में कांग्रेस के 136 विधायकों में से 37 लिंगायत और 23 वोक्कालिगा समुदाय से हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 51 लिंगायत उम्मीदवार उतारे थे। इंडियन एक्सप्रेस ने एक कांग्रेस नेता के हवाले से कहा कि हमारे लगभग आधे विधायक (44.11%) इन समुदायों से आते हैं। इनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत बड़ा है। इसलिए वे चिंतित हैं।
2-सिद्धारमैया द्वारा कुरुबा जाति को 22 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश पर अन्य जातियों में असंतोष
रिपोर्ट का एक और पहलू जो विरोध का कारण बन रहा है। दरअसल, सर्वेक्षण में II A श्रेणी के लिए आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 22% करने की सिफारिश की गई है। खास बात यह है कि इस वर्ग में फिलहाल कुरुबा समुदाय को शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसी जाति से आते हैं। जाहिर है, सरकार पर पक्षपात करने का आरोप लगेगा। पार्टी के ही दूसरे गुट इसे अन्यायपूर्ण बता रहे हैं। एक्सप्रेस लिखता है कि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी II A श्रेणी से नया ‘अति पिछड़ा वर्ग’ और I B बनाने की सिफारिश की है। इसमें कुरुबा समुदाय को शामिल करने की बात कही गई है और उनके लिए 12% आरक्षण की सिफारिश की गई है। इसके चलते II A श्रेणी का आरक्षण घटकर 10% रह गया है।
3- कांग्रेस पार्टी में ही असंतोष बढ़ा
इस जातिगत सर्वेक्षण की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस पार्टी में जबरदस्त असंतोष है। कांग्रेस के नेता खुद दावा कर रहे हैं कि जिस डेटा के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है, वह पुराना है। दरअसल, जो जातिगत सर्वेक्षण रिपोर्ट आई है, वह 2015 में हुई थी। सरकार को नए डेटा जुटाकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर वैज्ञानिक तरीके से आरक्षण ढांचे को फिर से तैयार करना चाहिए।
कांग्रेस के नेताओं को खुद लगता है कि इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया जा सकता, इसमें बड़े बदलाव करने होंगे। कुराबू जाति को ज्यादा आरक्षण मिलने पर खुद कांग्रेस के नेता तंज कस रहे हैं कि यह अभूतपूर्व पक्षपात है। जब कोई समूह सालों से आरक्षण का लाभ ले रहा है, तो उसे थोड़ा कम पिछड़ा होना चाहिए, न कि अधिक पिछड़े की श्रेणी में जाना चाहिए।
इससे साफ है कि पार्टी के अंदर ही घमासान मचा हुआ है। भाजपा और उसके सहयोगी दल पहले ही जातिगत सर्वेक्षण की इस रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का कहना है कि कांग्रेस सरकार जातिगत जनगणना के मुद्दे पर पाखंड कर रही है। उनका कहना है कि यह सब दरअसल भाजपा की जन आक्रोश यात्रा को असफल बनाने के लिए किया जा रहा है।