इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
देश की मोक्ष नगरी कही जाने वाली काशी (वाराणसी) और भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा इस समय सुर्खियों में है। क्योंकि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद इस चर्चा का सबसे बड़ा कारण है। देश में मस्जिदों का विवाद कोई नया नहीं है।
इससे पहले राम मंदिर-बाबरी मस्जिद भी विवादों में रही है, जो 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रूका था। तो आइए आज लेख के जरिए जानते हैं आखिर क्या हैं मंदिर-मस्जिद से जुड़े मामले, क्यों हो रहा इन पर विवाद, क्या है इनका इतिहास और शिया वक्फ बोर्ड ने क्यों की थी इन मस्जिदों को सरेंडर करने की अपील।
मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद
Shahi Idgah Mosque
आपको ज्ञात होगा कि काशी और मथुरा का विवाद भी कुछ-कुछ राम मंदिर अयोध्या की तरह ही है। हिंदुओं का दावा है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई थी। उधर कोर्ट में हिंदुओं का दावा है कि जिस स्थान पर ईदगाह मस्जिद बनी है। वहीं पर मथुरा के राजा कंस की जेल हुआ करती थी। इसी जेल में माता देवकी ने भगवान श्रीकृष्ण को जन्म दिया था।
इस विवाद की कहानी 1670 से शुरू होती है। मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया। जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया, उसे 1618 में बुंदेला राजा यानी ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 33 लाख मुद्राओं में (उस समय की) बनवाया था। मुगलों का राज होने की वजह से यहां हिंदुओं के आने पर रोक लगा दी गई।
1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का हुआ निर्माण
नतीजा ये हुआ कि 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग छिड़ गई और इसमें मराठाओं की जीत हुई और फिर से मंदिर का निर्माण हुआ। मराठाओं ने ईदगाह मस्जिद के पास 13.37 एकड़ जमीन पर भगवान केशवदेव यानी श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया. लेकिन धीरे-धीरे ये मंदिर जर्जर हो गया और कुछ सालों बाद आए भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया व जमीन टीले में बदल गई।
1803 में अंग्रेज मथुरा आए और 1815 में उन्होंने कटरा केशवदेव की जमीन को नीलाम कर दिया। इसी जगह पर भगवान केशवदेव का मंदिर था। बनारस के राजा पटनीमल ने इस जमीन को खरीदा। राजा पटनीमल इस जगह पर फिर से भगवान केशवदेव का मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। क्योंकि 1920 और 1930 के दशक में जमीन खरीद को लेकर विवाद हो गया।
क्या ये मथुरा मंदिर-मस्जिद विवाद जमीन को लेकर है
वहीं मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेजों ने जो जमीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था। फरवरी 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये जमीन खरीद ली। आजादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई।
अक्टूबर 1953 में मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ और 1958 में पूरा हुआ। इस मंदिर के लिए उद्योगपतियों ने चंदा दिया। ये मंदिर शाही ईदगाह मस्जिद से सटकर बनाया गया। 1958 में एक और संस्था का गठन हुआ, जिसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान था। कानूनी तौर पर इस संस्था का 13.37 एकड़ जमीन पर कोई हक नहीं था।
इतिहास कहता है कि 12 अक्टूबर 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। इसमें तय किया गया 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे। इस समझौते को श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट नहीं मानता है, वो धोखा बताता है। उनका कहना है कि पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। अब इस मामले में दाखिल याचिका में ईदगाह मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी कराने की मांग जोर पकड़ रही है।
वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
Varanasi Gyanvapi Mosque
वाराणसी में काशी-विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कई सालों से विवाद जारी है। माना जाता है कि 1699 में मुगल शासक औरंगजेब ने मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। यहां से मस्जिद को हटाने को लेकर पहली याचिका 1991 में दाखिल हुई थी।
2019 में मस्जिद के आर्कियोलॉजिकल सर्वे को लेकर याचिका दाखिल हुई थी, जो अभी अदालत में लंबित है। पिछले साल 5 महिलाओं की ओर से मस्जिद परिसर में रोजाना श्रृंगार गौरी देवी की पूजा करने की मांग वाली याचिका पर जिला अदालत ने मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी कराने का आदेश दिया था। 6 मई को शुरू हुआ सर्वे भारी विरोध की वजह से पूरा नहीं हो पाया।
आगरा के ताजमहल का विवाद
Taj Mahal
आगरा के ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1632 में शुरू कराया था, जो 1653 में खत्म हुआ था, लेकिन मुमताज के इस प्रसिद्ध मकबरे को लेकर भी हाल के वर्षों में विवाद उठ खड़े हुए हैं। कई हिंदू संगठनों का दावा है कि शाहजहां ने तेजो महालया नामक भगवान शिव के मंदिर को तुड़वाकर वहां ताजमहल बना दिया।
हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में ताजमहल के बंद 22 कमरों को खुलवाकर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया से जांच कराने की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की गई है। ये याचिका बीजेपी के अयोध्या के मीडिया इन-चार्ज रजनीश सिंह ने दाखिल की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि ताजमहल के बंद 22 कमरों की जांच से ये साफ हो जाएगा कि वह शिव मंदिर है या मकबरा।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद
Ram Mandir-Babri Masjid
ढाई साल पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का विवाद खत्म हो गया था। कई सौ वर्षों से जारी इस विवाद में 9 नवंबर 2019 को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को राम मंदिर के निर्माण के लिए हिंदू पक्ष को सौंपने का फैसला किया था। 1528 में यहां बनी बाबरी मस्जिद को 1992 में कारसेवकों ने ढहा दिया था।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में अटाला मस्जिद विवाद
Atala Masjid in Jaunpur
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थित अटाला मस्जिद भी विवादों से घिरी रही है। इस मस्जिद का निर्माण 1408 में इब्राहिम शरीकी ने कराया था। इब्राहिम ने जौनपुर में स्थित अटाला देवी मंदिर को तोड़कर वहां अटाला मस्जिद बनाई थी। अटाला देवी मंदिर का निर्माण गढ़ावला के राजा विजयचंद्र ने कराया था।
दिल्ली की कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद विवाद
दिल्ली की पहली शुक्रवार मस्जिद देश की प्रमुख धरोहरों में से एक कुतुब मीनार परिसर के अंदर स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को नष्ट करके किया गया था।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान अयोध्या में खुदाई में शामिल रहे प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने कहा था कि कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ गया था। केके मुहम्मद के मुताबिक, मस्जिद के पूर्वी गेट पर लगे एक शिलालेख में भी इस बात का जिक्र है।
इस मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस साल फरवरी में साकेत जिला अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिककर्ता का कहना है कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि यहां मंदिरों को नष्ट किया गया है। इसलिए उन्हें यहां पूजा करने का अधिकार दिया जाए। याचिका में ये भी कहा गया है कि इस मस्जिद में पिछले 800 वर्षों से नमाज नहीं अदा की गई है।
भोपाल के धार की कमल मौला मस्जिद विवाद
Kamal Moula Mosque of Dhar, Bhopal
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले में स्थित कमल मौला मस्जिद अक्सर विवादों में रही है। हिंदू इसे माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर भोजशाला बताते हैं, जबकि मुस्लिम इसे अपनी इबादतगाह यानी मस्जिद बताते हैं। कहते हैं कि भोजशाला मंदिर का निर्माण हिंदू राजा भोज ने 1034 में कराया था।
इस पर पहले 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने हमला किया। फिर मुस्लिम सम्राट दिलावर खान ने यहां स्थित विजय मंदिर को नष्ट करके सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने की कोशिश की। इसके बाद महमूदशाह ने भोजशाला पर हमला करके सरस्वती मंदिर के बाहरी हिस्से पर कब्जा करते हुए वहां कमल मौलाना मकबरा बना दिया।
1997 से पहले हिंदुओं को यहां पूजा नहीं, बल्कि केवल दर्शन करने की इजाजत थी। अब इसकी देखरेख आकियोलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया, यानी अरक करता है। उसने हिंदुओं को यहां हर मंगलवार और वसंत पंचमी पर पूजा करने और मुस्लिमों को हर शुक्रवार को नमाज पढ़ने की इजाजत दी है। यहां 2006, 2013 और 2016 को शुक्रवार के दिन वसंत पंचमी पड़ने पर सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं हो चुकी हैं।
गुजरात के पाटन की जामा मस्जिद विवाद
Jama Masjid in Patan, Gujarat
गुजरात के पाटन जिले में स्थित जामी मस्जिद को लेकर अक्सर विवाद उठता रहा है। माना जाता है कि इस मस्जिद को यहां बनी रुद्र महालय मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, रुद्र महालय मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में गुजरात के शासक सिद्धराज जयसिंह ने कराया था। 1410-1444 के बीच अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर के परिसर को नष्ट कर दिया था। बाद में अहमद शाह प्रथम ने मंदिर के कुछ हिस्से को जामी मस्जिद में बदल दिया था।
मध्य प्रदेश के विदिशा बीजा मंडल मस्जिद विवाद
Vidisha Bija Mandal Mosque
मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में स्थित बीजा मंडल मस्जिद को लेकर भी विवाद रहा है। माना जाता है कि बीजा मंडल मस्जिद का निर्माण परमार राजाओं की ओर से निर्मित चर्चिका देवी के हिंदू मंदिर को नष्ट करके किया गया था। इस स्थल पर मौजूद एक खंभे पर लगे शिलालेख में बताया गया है कि मूल मंदिर देवी विजया को समर्पित था। उन्हें चर्चिका देवी भी कहा जाता है। जो विजय की देवी मानी जाती हैं।
सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में हुआ था और फिर 11वीं सदी में चर्चिका देवी के भक्त परमार वंश और मालवा के राजा नरावर्मन ने विजया मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। माना जाता है कि 1658-1707 के दौरान औरंगजेब ने इस मंदिर पर हमला करके इसे लूटा और नष्ट कर दिया। उसने मंदिर के उत्तरी ओर मौजूद सभी मूर्तियों को दफनाकर इसे मस्जिद में बदल दिया।
गुजरात के अहमदाबाद की जामा मस्जिद विवाद
Jama Masjid of Ahmedabad
गुजरात के अहमदाबाद में स्थित जामा मस्जिद को लेकर भी विवाद रहा है। माना जाता है कि इस मस्जिद को हिंदू मंदिर भद्रकाली को तोड़कर बनाया गया है। अहमदाबाद का पुराना नाम भद्रा था। भद्रकाली मंदिर का निर्माण मालवा (राजस्थान) पर 9वीं से 14वीं सदी तक राज करने वाले राजपूत परमार राजाओं ने कराया था। अहमदाबाद में अभी जो जामा मस्जिद है, उसे अहमद शाह प्रथम ने 1424 में बनवाया था।
यहां पहले मंदिर होने का दावा करने वालों का तर्क है कि इस मस्जिद के ज्यादातर खंभे हिंदू मंदिरों के स्टाइल में बने हैं। इसके कई खंभों पर कमल के फूल, हाथी, कुंडलित नाग, नर्तकियों, घंटियों आदि की नक्काशी की गई है, जो अक्सर हिंदू मंदिरों में नजर आते हैं। साथ ही इसके हाल में कई खंभे बने हैं, जोकि आमतौर पर मंदिरों की पहचान हैं।
पश्चिम बंगाल के मालदा अदीना मस्जिद विवाद
Malda Adina Mosque of West Bengal
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के पांडुआ में स्थित अदीना मस्जिद का निर्माण 1358-90 में सिकंदर शाह ने कराया था। माना जाता है कि उसने भगवान शिव के प्राचीन आदिनाथ मंदिर को नष्ट करके उसकी जगह अदीना मस्जिद बनवाई थी। वहां मंदिर होने का दावा करने वालों का तर्क है कि अदीना मस्जिद के कई हिस्सों में हिंदू मंदिरों के स्टाइल की डिजाइन नजर आती हैं।
क्या कहती है शिया वक्फ बोर्ड की अपील
बताया जाता है कि अयोध्या में राम मंदिर का फैसला आने से एक साल पहले मार्च 2018 में उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने इन विवादित मस्जिदों के स्थलों को हिंदुओं को लौटाने की अपील की थी, जिन्हें मंदिरों को तोड़कर बनाए जाने का आरोप है।
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