India News (इंडिया न्यूज़), Lok Sabha Election 2024: आज सभी के लिए वोटर ID बहुत ही जरुरी बन गया है, क्योंकि इसका उपयोग मतदान के अलावा अन्य स्थानों पर भी पहचान पत्र और पते के प्रमाण के रूप में भी किया जाता है। चुनावों में फर्जी मतदान को रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत साल 1993 में की गई थी, लेकिन इसे जारी करने का सुझाव पहली बार 1957 में ही दिया गया थी जिसके बाद कई कठिनाइयों और भारी खर्चों के कारण इसे मतदाताओं तक पहुंचने में तीन दशक से ज्यादा का समय लग गया।

कैसे आया पहचान पत्र का विचार?

दरअसल चुनाव आयोग ने साल 1962 के लोकसभा चुनावों पर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 1957 के आम चुनावों के बाद घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में सभी मतदाताओं को पहचान पत्र जारी करने का सुझाव दिया गया था। माना जा रहा था कि इससे चुनाव के समय वोटर की पहचान करने में मदद मिलेगी। बाद में इस पर पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया।

पायलट प्रोजेक्ट हुआ फेल

मतदाताओं को फोटो पहचान पत्र जारी करने का एक पायलट प्रोजेक्ट साल 1960 में चलाया गया था। मौका था कि कलकत्ता (दक्षिण पश्चिम) लोकसभा का उपचुनाव। हालांकि, यह प्रोजेक्ट आगे जाकर सफल नहीं रहा। बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं ने पुरुष या महिला फोटोग्राफरों से फोटो खिंचवाने से इनकार कर दिया।  ऐसे में 10 महीने में सिर्फ 2.10 लाख पहचान पत्र ही जारी हो सके थे।

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सदन में विधेयक किया गया पेश

चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘लीप ऑफ फेथ’ के मुताबिक, फोटो पहचान पत्र जारी करने का प्रावधान लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक, 1958 में किया गया था। अशोक कुमार सेन, तत्कालीन कानून मंत्री और भारत के छोटे भाई प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने 27 नवंबर, 1958 को संसद के निचले सदन में विधेयक पेश किया। यह विधेयक 30 दिसंबर, 1958 को कानून बन गया।

चुनाव आयोग ने 2021 में वोटर आईडी कार्ड (ई-ईपीआईसी) का इलेक्ट्रॉनिक संस्करण लॉन्च किया। यह वोटर आईडी कार्ड का एक सुरक्षित पीडीएफ संस्करण है। इसे संपादित नहीं किया जा सकता। आप इसे मोबाइल पर डाउनलोड करके स्टोर कर सकते हैं।

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