India News (इंडिया न्यूज), Waqf Amendment Act West Bengal: देश में कल से वक्फ कानून लागू हो गया है। केंद्र सरकार ने इसको लेकर अधिसूचना जारी की है, जिसमें कहा गया है कि वक्फ कानून 8 अप्रैल से देश में प्रभावी रूप से लागू हो गया है। पिछले सप्ताह संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी। इसको लेकर विरोध भी हो रहा है।

दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन कानून लागू नहीं होगा। उनका कहना है कि वह अल्पसंख्यक लोगों और उनकी संपत्ति की रक्षा करेंगी। तो क्या वाकई ऐसा होता है कि राज्य सरकारें केंद्र के किसी कानून को लागू करने से मना कर देती हैं?

क्या कहता है अनुच्छेद 256?

भले ही राज्य सरकारें राजनीतिक लाभ के लिए संसद द्वारा पारित कानून और केंद्र सरकार के निर्देशों को खारिज करने का ऐलान कर दें, लेकिन राज्य सरकारें केंद्र द्वारा बनाए गए कानून और उसके निर्देशों का पालन करना बंद नहीं कर सकती हैं। संविधानविदों का कहना है कि केंद्र के निर्देशों का पालन करना राज्यों की जिम्मेदारी है। केंद्र के किसी भी कानून का पालन न करना संविधान की विफलता माना जाता है और इसकी विफलता की स्थिति में क्या कार्रवाई की जा सकती है, यह संविधान में स्पष्ट रूप से दिया गया है। अनुच्छेद 256 में कहा गया है कि संसद द्वारा पारित कानून को लागू करना राज्य सरकारों का कर्तव्य है।

कानून के क्रियान्वयन को रोकना महज राजनीतिक बयानबाजी?

ममता बनर्जी के बयान के बारे में एबीपी न्यूज से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि यह महज राजनीतिक बयानबाजी है। राज्य सरकारें केंद्र के किसी भी कानून के क्रियान्वयन को नहीं रोक सकती हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हम तीन तलाक कानून को लें तो यह पूरे देश में लागू हो चुका है, ऐसे में अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री यह कहता है कि वह अपने राज्य में इसे लागू नहीं होने देगा तो उसका बयान मान्य नहीं होगा। अगर उस राज्य में तीन तलाक का कोई मामला आता है और कोई व्यक्ति इसके लिए एफआईआर दर्ज कराने जाता है तो पुलिस यह कहकर शिकायत दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती कि मुख्यमंत्री ने कहा था कि हम अपने राज्य में फलां कानून को लागू नहीं होने देंगे।

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पहले भी विरोध देखने को मिला?

ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों के पास मना करने का विकल्प नहीं है। उन्हें संसद द्वारा पारित कानून को लागू करना ही होगा। जहां तक ​​राज्यों की शिकायतों का सवाल है, वे इस बारे में हमेशा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि नागरिकों को परेशान किया जा रहा है, तो वे इसके लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि कोई राज्य सरकार संसद द्वारा पारित कानून को राज्य में लागू होने से रोक रही है। इससे पहले जब सीएए लाया गया था, तब भी पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारों ने अपने राज्यों में इसके लागू होने का विरोध किया था।

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