India News (इंडिया न्यूज)Manoj naravane: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के साथ-साथ पीओके में कई आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया और उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया। हालांकि, शनिवार को दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम स्थापित हो गया। इस बीच, पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने इस संघर्ष को रोकने के फैसले पर उठ रहे सवालों की निंदा की है। उन्होंने कहा कि ‘युद्ध न तो रोमांटिक होता है और न ही यह कोई बॉलीवुड फिल्म है, यह एक गंभीर विषय है।’
रविवार (12 मई) को पुणे में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व सेना प्रमुख नरवणे ने कहा कि अगर आदेश दिया जाता है तो वह युद्ध के लिए तैयार हैं, लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता हमेशा कूटनीति होगी। उन्होंने कहा कि यह सप्ताह उथल-पुथल भरा रहा है, जिसकी शुरुआत ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से हुई थी। इसके तहत भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों और बुनियादी ढांचे पर हमला किया, जिसके बाद चार दिनों तक हवाई और कुछ जमीनी लड़ाई चलती रही।
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‘यह सैन्य कार्रवाई का अंत है, युद्ध विराम नहीं’
उन्होंने कहा कि आखिरकार सैन्य कार्रवाई रोकने की घोषणा की गई। नरवणे ने कहा, ‘मैं दोहराना चाहूंगा कि यह केवल सैन्य कार्रवाई का अंत है, संघर्ष विराम नहीं। देखते हैं कि आने वाले दिनों और हफ्तों में क्या होता है।’ उन्होंने कहा कि कई लोगों ने सैन्य कार्रवाई के निलंबन पर सवाल उठाए हैं और पूछा है कि क्या यह अच्छी बात है। नरवणे ने कहा कि अगर हम तथ्यों और आंकड़ों, खासकर युद्ध की कीमत पर विचार करें, तो हमें एहसास होगा कि एक समझदार व्यक्ति बहुत अधिक या अपूरणीय क्षति होने से पहले ही निर्णय ले लेता है।
‘अगर पाकिस्तान आतंक के रास्ते पर चलता है, तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी’
इसके अलावा उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमने पाकिस्तान को यह साबित कर दिया है कि आतंकवाद के रास्ते पर चलते रहने की कीमत बहुत अधिक होगी। इसने उन्हें मजबूर किया और आखिरकार उनके डीजीएमओ ने हमें युद्ध विराम की संभावना पर चर्चा करने के लिए बुलाया।
‘अपनों को खोने का दर्द जीवन भर रहता है’
उन्होंने कहा कि इसका एक तीसरा पहलू भी है, जो सामाजिक है। जब रात में गोले गिरते हैं और सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों, खासकर बच्चों को शरणस्थलों की ओर भागना पड़ता है, तो वह अनुभव उनके मन पर गहरा असर छोड़ता है। उन्होंने कहा कि कौन बच्चा अपने माता-पिता को खोने का दर्द और ऐसी तबाही को भूल पाएगा। पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि जिन लोगों ने अपने परिजनों को खोया है, उनके लिए वह दर्द जीवन भर बना रहता है, जिसे वे कभी नहीं भूल सकते। इसे ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ (PTSD) कहते हैं। ऐसे भयावह दृश्य देखने वाले लोग 20 साल बाद भी पसीने से लथपथ उठते हैं और उन्हें मनोचिकित्सक की मदद की जरूरत पड़ती है।
‘युद्ध कोई रोमांटिक चीज नहीं है…’
नरवणे ने कहा, ‘युद्ध कोई रोमांटिक चीज नहीं है। यह आपकी बॉलीवुड फिल्म नहीं है। यह एक गंभीर विषय है। युद्ध या हिंसा अंतिम विकल्प होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। भले ही अविवेकी लोग हम पर युद्ध थोपें, हमें उसका स्वागत नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी भी लोग पूछ रहे हैं कि हमने अब तक पूरी ताकत से युद्ध क्यों नहीं लड़ा। नरवणे ने कहा कि एक सैनिक के तौर पर अगर उन्हें आदेश दिया जाता है तो वे युद्ध में जाएंगे, लेकिन यह उनका पहला विकल्प नहीं होगा।
‘हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है’
जनरल नरवणे ने कहा कि उनके विकल्प कूटनीति, बातचीत के जरिए मतभेदों को सुलझाना और सशस्त्र संघर्ष की स्थिति पैदा न होने देना होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा में हम सभी समान हितधारक हैं। हमें न केवल देशों के बीच, बल्कि अपने, अपने परिवारों, राज्यों, क्षेत्रों और समुदायों के बीच के मतभेदों को भी बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है।