India News (इंडिया न्यूज), Three language formula: शिक्षा मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया, त्रि-भाषा फार्मूले के तहत किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी, बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली भाषाएं राज्यों और छात्रों की पसंद होंगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूला द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच राजनीतिक विवाद का केंद्र रहा है। एनईपी 2020 में तीन-भाषा फॉर्मूला का सुझाव है कि छात्र तीन भाषाएँ सीखें, जिनमें से कम से कम दो मूल भारतीय भाषाएँ होनी चाहिए। यह फॉर्मूला सरकारी और निजी दोनों स्कूलों पर लागू होता है, जिससे राज्यों को बिना किसी दबाव के भाषाएँ चुनने की आज़ादी मिलती है।
त्रिभाषा फॉर्मूला क्या है?
NEP 2020 में प्रस्तावित त्रिभाषा फॉर्मूला कहता है कि छात्रों को तीन भाषाएँ सीखनी चाहिए और इनमें से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएँ होनी चाहिए। यह फॉर्मूला सरकारी और निजी दोनों तरह के स्कूलों पर लागू होता है और राज्यों को बिना किसी दबाव के भाषाएँ चुनने की आज़ादी देता है।
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त्रिभाषा सूत्र का इतिहास
त्रिभाषा सूत्र सबसे पहले शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसे आधिकारिक तौर पर कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 1968 में औपचारिक रूप से अपनाया गया था। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान एनईपी 1986 में त्रिभाषा सूत्र की पुष्टि की गई थी। 1992 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए इसमें संशोधन किया। इस सूत्र में तीन भाषाएँ शामिल थीं – मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, आधिकारिक भाषा (अंग्रेजी सहित) और एक आधुनिक भारतीय या यूरोपीय भाषा।