India News (इंडिया न्यूज़), One Nation, One Election: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के एक ऐलान से देशभर में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की आहट और उस पर सियासी अटकलों का बाजार गर्म हो चुका है। विपक्ष लगातार इस बात पर कोई न कोई तंज मोदी सरकार पर देता रहता है। इस खबर में हम आपको वन नेशन, वन इलेक्शन से जुड़ी सारी जानकरियां देंगे कि ये क्या है और इतिहास में इससे जुड़े मुद्दे पहले भी उठे हैं।
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पहले भी हो चुके हैं चार चुनाव
हालांकि, यह परंपरा 1968-69 में बंद कर दी गई थी, क्योंकि तब कुछ विधान सभाओं को समय से पहले ही भंग कर दिया गया था। तब से भारत की यह पुरानी चुनाव प्रणाली बदल गई और इसे फिर से लागू करने की पुरजोर कोशिश होती रही है लेकिन राजनीतिक दलों के बीच इस पर सहमति नहीं बन पा रही है। कोई सरकार इसे लागू करने की कोशिश करती तो विपक्ष इस पर रोक लगाने का प्रयास करता रहता है।
पहले के चुनावों का क्या रहा हाल?
देश में पहली बार चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच हुए थे। तब लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के भी चुनाव हुए थे। उस वक्त लोकसभा में 494 सीटें हुआ करती थीं। पहली लोकसभा के लिए हुए आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 365, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 16, सोस्लिस्ट पार्टी को 12, किसान मजदूर पार्टी को 9, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट को 7, गणतंत्र परिषद् को 6, हिन्दू महासभा को 4 सीट और निर्दलीयों को 37 सीटें मिली थीं। जवाहर लाल नेहरू तब निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री बने थे।
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केंद्र में इंदिरा गांधी ने तोड़ी थी परंपरा
क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन?
भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के आम चुनाव 5 साल के अंतराल पर होते हैं। जम्मू कश्मीर में अब तक छह साल पर विधानसभा चुनाव होते आए हैं। कुछ राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव समय पूर्व भी कराए जाते रहे हैं। कई बार केंद्र की सरकारों ने भी समय पूर्व चुनाव कराए हैं। लेकिन इस प्रक्रिया से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। अब नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार 5 साल के अंतराल में पूरे देश में सिर्फ एक चुनाव कराना चाहती है। सरकार का तर्क है कि इससे सरकारी खजाने पर बोझ घटेगा और सरकारी कर्मचारियों पर काम का बोझ भी कम हो सकेगा।