India News (इंडिया न्यूज),Rahul Gandhi SC-St: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार (27 मई) को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी पर विदेशी टूलकिट के सहारे झूठ फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने राहुल के उस दावे को भी नकार दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के योग्य उम्मीदवारों को जानबूझकर नॉट फाउंड सूटेबल (एनएफएस) घोषित किया जा रहा है ताकि उन्हें शिक्षा और नेतृत्व से दूर रखा जा सके।

‘राहुल गांधी को इतिहास नहीं पता’

धर्मेंद्र प्रधान ने राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को झूठ और धोखाधड़ी का सबसे बड़ा ब्रांड एंबेसडर बताते हुए कहा कि कांग्रेस के नेहरू-गांधी परिवार ने हमेशा एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों को धोखा दिया है, लेकिन राजकुमार को अपने ही राजघराने के इतिहास की जानकारी नहीं है।

धर्मेंद्र प्रधान का राहुल गांधी पर पलटवार

केंद्रीय मंत्री ने कहा, इसीलिए कांग्रेस हर रोज विदेशी टूलकिट के आधार पर राजकुमार को झूठ का पुलिंदा परोसती है। उन्होंने दावा किया कि 2014 में कांग्रेस राज खत्म होने तक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 57 फीसदी एससी, 63 फीसदी एसटी और 60 फीसदी ओबीसी शिक्षकों के पद रिक्त थे। उन्होंने कांग्रेस नेता के आरोपों का जवाब देते हुए केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों का आंकड़ा भी पेश किया।

मोदी सरकार के कार्यकाल में हुई अधिक नियुक्तियां

धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि 2004-14 के कांग्रेस शासन के दौरान आईआईटी में केवल 83 एससी, 14 एसटी और 166 ओबीसी शिक्षकों की नियुक्ति हुई, जबकि एनआईटी में 261 एससी, 72 एसटी और 334 ओबीसी नियुक्तियां की गईं। इसके विपरीत, उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के 2014-24 के कार्यकाल के दरम्यान आईआईटी में 398 एससी, 99 एसटी और 746 ओबीसी शिक्षकों की नियुक्ति हुई, जबकि एनआईटी में 929 एससी, 265 एसटी और 1510 ओबीसी शिक्षकों की भर्ती हुई।

असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए पीएचडी की अनिवार्यता समाप्त

उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार ने असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए पीएचडी की अनिवार्यता समाप्त कर दी है, जिससे अब वंचित वर्ग के लिए अवसर बढ़ गए हैं। प्रधान ने कहा कि राहुल गांधी जिस ‘उपयुक्त नहीं पाए जाने’ की बात कर रहे हैं, वह कांग्रेस की दलित विरोधी, शोषित विरोधी और वंचित विरोधी सोच का परिणाम है। एनएफएस की यह परंपरा कांग्रेस की आजादी के बाद की नीतियों का परिणाम है, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी के अधिकारों का हनन किया गया।

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