India News (इंडिया न्यूज), Jammu Kashmir Article 370: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज 11 दिसंबर (सोमवार) को अपना फैसला सुनाएगा। बता दें कि केंद्र सरकार ने साल 2019 में जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेट का दर्जा खत्म करते हुए आर्टिकल 370 हटा दिया था। वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तीन साल से अधिक समय के बाद 2 अगस्त को शुरू हुई।
11 दिसंबर (सोमवार) को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई सूची के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी। पीठ के अन्य सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं।
Article 370 पर अहम बिंदु
(SC on Article 370)
- 2019 में जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेट का दर्जा खत्म करते हुए आर्टिकल 370 हटा दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट में 16 दिनों तक मेराथॉन बहस चली थी।
- Supreme Court ने 5 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
- तीन साल से अधिक समय के बाद 2 अगस्त को शुरू हुई सुनवाई।
- SC के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आज इस मामले पर फैसला सुनाएगी।
- अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए कोर्ट में केंद्र सरकार के फैसले की पैरवी की।
- याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें कोर्ट में पेश कीं।
सुप्रीम कोर्ट में बहस
इस मामले पर वकीलों की ओर से 5 अगस्त 2019 को केंद्र के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता, राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन को चुनौती और राष्ट्रपति शासन के विस्तार सहित विभिन्न मुद्दों पर बहस की और अपनी अपनी दलीलें रखीं। याद हो कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं 2019 में संविधान पीठ के सामने रखी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के अहम सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सवाल किया कि
1.जब जम्मू-कश्मीर में कोई संविधान सभा मौजूद नहीं हो तो क्या उसकी सहमति ऐसा कदम उठाने से पहले जरूरी होती है?
2.साथ ही अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है?
3.सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह भी पूछा गया कि एक प्रावधान (अनुच्छेद 370), जिसे विशेष रूप से संविधान में अस्थायी के रूप में उल्लेखित किया गया था। वह 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद स्थायी कैसे हो सकता है?
केंद्र की दलील
केंद्र सरकार की ओर से अदालत में कहा गया कि ”अनुच्छेद 370 को निरस्त करना संवैधानिक फ्रॉड नहीं था। इसे कानूनी ढांचे के अनुरूप हटाया गया था। जम्मू कश्मीर का भारत में विलय अन्य रियासतों की तरह एक प्रक्रिया से हुआ था।”
केंद्र सरकार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ”केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति अस्थायी है और वह राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है। सुनवाई के दौरान सरकार ने हिंसा में गिरावट का हवाला दिया और कहा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।
याचिकाकर्ताओं ने क्या तर्क दिए
अदालत में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि;
1.”अनुच्छेद 370, जिसे शुरू में अस्थायी माना गया था, वह जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद स्थायी हो गया था।”
2.”संसद के पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए खुद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित करने का अधिकार नहीं है।”
3.”अनुच्छेद 370 के क्लाउज 3 का जिक्र करते हुए कहा कि इसे हटाने के लिए संविधान सभा की सिफारिश महत्वपूर्ण थी। संविधान सभा की मंजूरी के बिना इसे निरस्त नहीं किया जा सकता”
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का तर्क
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कहा कि ”भारत में शामिल होने पर जम्मू कश्मीर के महाराजा ने राज्य पर क्षेत्रीय संप्रभुता बरकरार रखी, लेकिन उनके पास संप्रभुता नहीं थी। हालांकि रक्षा, विदेश मामले और संचार, कानून और शासन के लिए अन्य सभी शक्तियां केंद्र के पास थीं।”
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