महिला कर्मचारियों और छात्राओं को हर महीने मासिक धर्म (पीरियड्स) से जुड़ी तकलीफों के लिए छुट्टी देने का प्रावधान बनाने पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने अस्विकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यह एक आचार-व्यवहार का मसला है इसके लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को उद्देश्य पत्र दिया जाना चाहिए।

  • शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दी याचिका
  • सुप्रीम कोर्ट ने अस्विकार की याचिका
शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दी याचिका

शैलेंद्र मणि त्रिपाठी वकील की तरफ से दी गई याचिका में कहा गया था कि महिलाओं को गर्भावस्था के लिए अवकाश मिलता है, लेकिन मासिक धर्म के लिए नहीं। वकील ने आगे कहा कि यह भी महिलाओं के शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक जरूरी विषय है बिहार समेत कुछ राज्यों ने महीने में 2 दिन छुट्टी का प्रावधान पहले से है हर राज्य को ऐसे नियम बनाने का निर्देश दिया जाना चाहिए या फिर केंद्रीय स्तर पर इसके लिए कानून बनाया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने अस्विकार की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को माहवारी के दौरान अवकाश दिए जाने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका को अस्विकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि पीरियड्स लीव पॉलिसी मैटर है, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से मना कर दिया जिसमें सभी राज्यों को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया था।

कि महिलाएं माहवारी से होने वाली पीड़ा के अंतर्गत छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर उन दिनों अवकाश के प्रावधान वाले नियम बनाएं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मुद्दा सरकार के नीतिगत दायरे में आता है। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कोर्ट ने कहा कि ये एक नीतिगत विषय है जिस पर सरकार और संसद विचार कर सकते हैं। उचित ये होगा कि याचिकाकर्ता महिला और बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करे।

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