India News (इंडिया न्यूज़), Sharad Pawar Resign, मुंबई: एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष का पद छोड़ने का फैसला किया है। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया है। 1998 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने एनसीपी का गठन किया था तब से वह पार्टी के प्रमुख थे। उनके पद छोड़ने के बाद अब उनके वारिस की लड़ाई तेज हो गई है। आइए नजर डालते है शरद पवार के राजनीतिक जीवन पर-
कैसा रहा राजनीतिक सफर?
पिछले पचास साल से महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी धाक जमाए शरद पवार इसी राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके हैं। इसके अलावा मनमोहन सिंह की कैबिनेट में साल 2004 से 2014 तक वह कृषि मंत्री भी रहे। पवार केंद्र में रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं।
सबसे अच्छे रिश्ते
राजनीति में अपनी चाल का लेकर मशहूप शरद पवार का राजनीतिक और व्यवहारिक आचरण भी काफी अच्छा रहा है। यही कारण है कि उनके रिश्ते सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, सबसे हमेशा अच्छे रहे हैं। साल 2017 में उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मानित सिविलियन पुरस्कार से भी ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया जा चुका है। उस वक्त मोदी सरकार सत्ता में थी।
27 साल की उम्र में विधायक
शरद पवार ने राजनीति में कदम रखने के बाद से ही सूझबूझ से आगे बढ़ना शुरू किया था। यही कारण है कि महज 27 साल की उम्र में ही वो एमएलए चुने गए थे। इसके बाद शरद पवार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह लगातार बुलंदियों को छूते रहे।
इंदिरा गांधी ने बर्खास्त किया
इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी से बगावत कर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया था और साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया और राज्य के सीएम भी बने। साल 1980 में जब इंदिरा की सरकार वापस आई तो शरद पवार की सरकार बर्खास्त कर दी गई। लेकिन साल 1983 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन कर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बरकरार रखी।
विपक्ष के नेता बने
उस साल हुए लोकसभा चुनाव में शरद ने पहली बार बारामती से चुनाव जीता था। हालांकि 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 54 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की और एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में उनकी वापसी हुई। शरद पवार ने लोकसभा से इस्तीफा दिया और विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व किया।
कांग्रेस में वापसी
साल 1987 में एक बार फिर वह कांग्रेस में वापस आ गए और राजीव गांधी के नेतृत्व में आस्था जता कर उनके करीब हो गए। शरद पवार को साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिली जबकि चव्हाण को साल 1988 में केंद्र में वित्त मंत्री बनाया गया।
पीएम बनने से चूके
साल था 1991, राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बहुमत मिल चुका था। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया.।इसके बाद नामों को लेकर अटकलें तेज होने लगी। कांग्रेस में उस वक्त दो गुट सबसे ज्यादा हावी था। उत्तर भारत गुट और महाराष्ट्र गुट। उत्तर भारत गुट में नेता थे- अर्जुन सिंह, शंकर दयाल शर्मा, मोतीलाल बोरा और अहमद पटेल।
नरसिम्हा राव बने पीएम
महाराष्ट्र गुट में यशवंत राव चव्हाण, विलास राव देशमुख और शरद पवार का नाम था। इसी बीच एक अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी कि शरद पवार प्रधानमंत्री बन सकते हैं। खबर छपते ही कांग्रेस का उत्तर भारत गुट सक्रिय हो गया। पहले शंकर दयाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन शर्मा प्रधानमंत्री बनने से खुद इनकार कर दिए। इसके बाद दक्षिण भारत से आने वाले पीवी नरसिम्हा राव के नाम का प्रस्ताव रखा गया। पवार इसी तरह रेस से बाहर हो गए और प्रधानमंत्री बनने से चूक गए।
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