India News (इंडिया न्यूज), Tablighi Jamaat: हरियाणा के नूंह में आज यानी शनिवार से तब्लीगी जमात का जलसा शुरू होने जा रहा है। इस जलसे में मौलाना हजरत साद हिस्सा लेंगे। आपको जानकारी के लिए बता दें कि, यह जलसा 19 अप्रैल से शुरू होकर 21 अप्रैल तक चलेगा और इसमें बड़ी संख्या में लोगों के जुटने की उम्मीद है। कोविड-19 के दौर में आपने “तब्लीगी जमात” का नाम तो सुना ही होगा। क्या आपको पता है तब्लीगी जमात के बारे में? अगर नहीं पता तो चलिए हम आपको बताते हैं।
क्यों शुरू किया गया था तब्लीगी जमात?
तब्लीगी जमात की स्थापना 99 साल पहले हुई थी। इस संगठन की शुरुआत साल 1926 में भारत के मेवात में एक देवबंदी इस्लामिक विद्वान मोहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने की थी। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, अल-कांधलवी का उद्देश्य मुस्लिम समाज के रूप में समर्पित प्रचारकों के एक समूह की स्थापना करना था, जो “सच्चे” इस्लाम को पुनर्जीवित कर सकें। दरअसल, उन्होंने देखा था कि बहुत से मुसलमान इस्लाम का सही तरीके से पालन नहीं कर रहे थे। इसीलिए मुसलमानों को सही रास्ता दिखाने, उन्हें सही शिक्षा देने के लिए इस संगठन की स्थापना की गई थी।
कितने देशों में मौजूद है ये संगठन?
अल-कांधलावी ने अपने नए संगठन के लिए जो नारा गढ़ा, उसमें इसकी गतिविधियों का सार था – “ऐ मुसलमानों, सच्चे मुसलमान बनो”। अल-कांधलावी ने अपने साथी मुसलमानों से “सही रास्ते पर आने और बुराई से दूर रहने” के लिए कहा। ब्रिटिश भारत में संगठन का तेजी से विकास हुआ। नवंबर 1941 में आयोजित इसके वार्षिक सम्मेलन में लगभग 25,000 लोग शामिल हुए। विभाजन के बाद, यह पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (हाल ही में बांग्लादेश) में मजबूत हुआ। अब, तब्लीगी जमात की सबसे बड़ी राष्ट्रीय शाखा बांग्लादेश में है। यह समूह 150 देशों में मौजूद है और इसके लाखों अनुयायी हैं।
क्या है उद्देश्य?
तबलीगी साथी मुसलमानों से पैगंबर मोहम्मद की तरह जीने के लिए कहते हैं। वे धार्मिक रूप से सूफी इस्लाम की समन्वयात्मक प्रकृति के विरोधी हैं। वे मुसलमानों से पैगंबर की तरह कपड़े पहनने पर जोर देते हैं (पजामा या पैंट टखने से ऊपर होना चाहिए)। पुरुष आमतौर पर अपने ऊपरी होंठ को मुंडवाते हैं और लंबी दाढ़ी रखते हैं। हालांकि, संगठन का ध्यान दूसरे धर्मों के लोगों को इस्लाम में परिवर्तित करना नहीं है, बल्कि मुसलमानों को इस्लाम का सही तरीके से अभ्यास कराना और उन्हें सही रास्ता दिखाना है। यह मुस्लिम आस्था को ‘शुद्ध’ करने पर केंद्रित है।