India News (इंडिया न्यूज),Manmohan Singh: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 92 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली। उनके सम्मान में केंद्र सरकार ने सात दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। फिलहाल उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित बंगला नंबर 3 में रखा गया है। उनका अंतिम संस्कार शनिवार 28 दिसंबर को किया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? इस बात को लेकर लोगों के मन में सवाल हैं।भारतीय परंपराओं के अनुसार, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद आमतौर पर बेटा ही अंतिम संस्कार करता है और शव को जलाता है। अब आम तौर पर इस परंपरा से हटकर बेटियां भी शव का अंतिम संस्कार करने लगी हैं।

परिवार में कौन-कौन है ?

मनमोहन सिंह की तीन बेटियां हैं। तीनों की उम्र लगभग छठे दशक में है। उनकी सबसे बड़ी बेटी उपिंदर सिंह 65 साल की हैं। उनके दो बेटे हैं। दूसरी बेटी दमन सिंह 61 साल की हैं। उनका एक बेटा है जिसका नाम रोहन पटनायक है। तीसरी बेटी अमृत सिंह 58 साल की हैं लेकिन उनके परिवार के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।

अंतिम संस्कार  को लेकर क्या कहता है शास्त्र ?

तो अब सवाल यह उठ रहा है कि शनिवार को मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के दौरान यह भूमिका कौन निभाएगा। बेटे के न होने पर यह भूमिका उनकी बेटियों के जिम्मे होगी। आगे हम जानेंगे कि शास्त्र इस बारे में क्या कहते हैं। क्या बड़ी बेटी चिता को मुखाग्नि देगी या कोई और यह काम करेगा।शास्त्रों में माना जाता है कि मृत्यु के बाद चिता को अग्नि देना एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है। यह जिम्मेदारी पारंपरिक रूप से बेटे या निकटतम पुरुष रिश्तेदार द्वारा निभाई जाती है। हालांकि, अगर किसी व्यक्ति की केवल बेटियां हैं, तो इसे लेकर अलग-अलग प्रथाएं और परंपराएं भी शुरू हो गई हैं, जिन्हें स्वीकार भी किया गया है।शास्त्रों में एक उद्धरण है कि “कन्या या पुत्री को भी बेटे के समान अधिकार है, अगर वह यह काम श्रद्धा और प्रेम से करे।” शास्त्रों का मुख्य उद्देश्य धर्म और कर्तव्य का पालन करना है, न कि केवल परंपरा का।

किस धर्म के अनुसार होगा अंतिम संस्कार

चूंकि मनमोहन सिंह सिख धर्म से थे, इसलिए उनका अंतिम संस्कार उसी के अनुसार किया जा सकता है। इसे अंतिम संस्कार कहा जाता है। सिख धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपराएं और तरीके हिंदू धर्म से कुछ अलग हैं। सिख धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार अधिक सादगी और श्रद्धा के साथ किया जाता है।कोई भी करीबी रिश्तेदार यह काम कर सकता है। सिख धर्म में यह बाध्यता नहीं है कि केवल पुरुष ही मुखाग्नि दे सकते हैं। परिवार का कोई भी सदस्य, चाहे वह बेटा, बेटी, पत्नी, भाई, बहन या कोई अन्य करीबी रिश्तेदार हो, मुखाग्नि दे सकता है।सिख धर्म में बेटियों को समान अधिकार दिए गए हैं। इसलिए बेटियां भी अपने माता-पिता या किसी अन्य रिश्तेदार को मुखाग्नि दे सकती हैं। सिख धर्म में माना जाता है कि आत्मा अमर है। मृत्यु केवल शरीर का त्याग है। इसलिए अंतिम संस्कार में किसी विशेष व्यक्ति का मौजूद होना अनिवार्य नहीं है।सिख धर्म गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं पर आधारित है, जो लिंग भेदभाव को पूरी तरह से खारिज करता है। इसलिए, पुरुष और महिला दोनों को मुखाग्नि देने का समान अधिकार हो सकता है। अंतिम संस्कार के दौरान सुखमनी साहिब, अर्थी साहिब और आनंद साहिब का पाठ किया जाता है।

गरुड़ पुराण क्या कहता है?

गरुड़ पुराण और अन्य शास्त्रों में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है कि केवल पुत्र ही अंतिम संस्कार कर सकता है। शास्त्रों में कहा गया है कि अंतिम संस्कार करने वाला व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जो मृतक के प्रति अपने धर्म और कर्तव्य को निभाने में सक्षम हो। यह भी कहा गया है कि यदि पुत्र अनुपस्थित हो या मौजूद न हो तो निकटतम रिश्तेदार या योग्य व्यक्ति यह कर्तव्य निभा सकता है। बेटियों का अंतिम संस्कार करना भी पूरी तरह से कानूनी है आधुनिक समय में कई जगहों पर बेटियां अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार करती हैं। इसे सामाजिक और कानूनी मान्यता भी दी जा रही है। कई धार्मिक गुरुओं और शास्त्रों के जानकारों ने इस बात की पुष्टि की है कि बेटियां भी माता-पिता का अंतिम संस्कार कर सकती हैं। यह पूरी तरह से कानूनी और उचित है। भारतीय समाज में समानता और महिला सशक्तिकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण बेटियों द्वारा अंतिम संस्कार करना अधिक स्वीकार्य हो रहा है। अब कई परिवार मानते हैं कि बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार और कर्तव्य प्राप्त हैं।

कोई कानूनी बाध्यता नहीं

जहां तक ​​कानून की बात है तो भारत में ऐसी कोई कानूनी बाध्यता नहीं है कि अंतिम संस्कार सिर्फ बेटे ही करें। बेटियां, पत्नी या कोई अन्य पारिवारिक सदस्य भी यह कर्तव्य निभा सकता है।

मनमोहन सिंह का पोता करेगा अंतिम संस्कार ?

कई बार पोते भी यह भूमिका निभाते हैं। अगर मनमोहन सिंह के तीनों पोतों में से कोई मुखाग्नि देता है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि सिख धर्म के अनुसार यह भी पूरी तरह धर्म के अनुरूप है। पोते को परिवार का अंग माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से वह अपने दादा के प्रति सम्मान और श्रद्धा दिखाते हुए यह कर्तव्य निभा सकता है।

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