India News (इंडिया न्यूज),Vice President Jagdeep Dhankhar On SC: सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तीखी प्रतिक्रिया के बाद एक बार फिर संविधान और संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र को लेकर देश की राजनीति गरमा गई है। जगदीप धनखड़ ने कहा, ”भारत में ऐसा लोकतंत्र नहीं होना चाहिए जहां जज ‘सुपर पार्लियामेंट’ की तरह काम करें और राष्ट्रपति को निर्देश दें।” इस बयान के पलटवार में कांग्रेस के बरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने कहा, ”अगर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या पीएम अपनी सीमा पार करते हैं तो सर्वोच्च न्यायालय उन्हें रोक सकता है।”

अडानी पोर्ट्स करेगा ऑस्ट्रेलियाई टर्मिनल का अधिग्रहण, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में और भी मजबूत होगी कंपनी की मौजूदगी

उपराष्ट्रपति का बयान

राज्यसभा के प्रशिक्षु कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर विधेयकों पर फैसला लेना होगा। धनखड़ ने सवाल उठाया, “क्या अब राष्ट्रपति को यह निर्देश दिया जाएगा कि उन्हें कब और क्या फैसला लेना है? क्या अब न्यायाधीश कानून बनाने के साथ-साथ कार्यपालिका के कार्य भी करेंगे?” उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने कभी नहीं सोचा था कि देश में ऐसी स्थिति आएगी, जहां न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका की भूमिका निभाने लगेगी।

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने उपराष्ट्रपति के इस बयान पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “हम उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, लेकिन संविधान में सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी को उसकी सीमा लांघने पर रोक सकता है।” उन्होंने आगे कहा कि अगर किसी व्यक्ति या संस्था का आचरण संविधान के खिलाफ है, तो जनता और विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है।

संवैधानिक अधिकार और जिम्मेदारियां

भारतीय संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका इन तीनों ही संस्थाओं के पास अलग-अलग शक्तियां और जिम्मेदारियां हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को संविधान का संरक्षक माना जाता है, वहीँ अगर पार्लियामेंट द्वारा कोई विधेयक पारित कर दिया गया है, तो वे उस पर निर्णय लेने से इनकार नहीं कर सकते। वहीं, सुप्रीम कोर्ट संविधान का सर्वोच्च व्याख्याता है और उसे कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर विधेयक पर फैसला लेना होगा, ताकि देश की विधायी प्रक्रिया में किसी तरह की अनिश्चितता न रहे।

शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा ने जनता दरबार में सुनीं लोगों की समस्याएं, भीड़ बढ़ी तो ज़मीन पर ही बैठ गए ‘मंत्री जी’ अधिकारियों त्वरित समाधान के निर्देश