India News (इंडिया न्यूज), Waqf Amendment Bill 2025:बीती रात लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बिल की कॉपी फाड़कर अपना विरोध दर्ज कराया। इसको लेकर बवाल मचा हुआ है। संसदीय परंपरा में ऐसी घटनाएं कम ही देखने को मिली हैं। यह संसदीय मर्यादा और नियमों के उल्लंघन के सवाल से जुड़ा मसला भी है। लोकसभा में अपने भाषण के दौरान ओवैसी ने इस बिल को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि मैं गांधी की तरह इस बिल को फाड़ता हूं। यह मुसलमानों के साथ अन्याय है। अब सवाल यह उठता है कि क्या ओवैसी का यह तरीका संसद के नियमों के खिलाफ है और क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की जा सकती है।
बिल की कॉपी फाड़ने की यह पहली घटना नहीं
वैसे संसद और विधानसभाओं में बिल की कॉपी फाड़ने की यह पहली घटना नहीं है। संसदीय इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब सांसदों ने इस तरह से अपना विरोध जताया। 16 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) पर चर्चा के दौरान खुद ओवैसी ने इस बिल की कॉपी फाड़ी थी। तब उन्होंने कहा था कि यह बिल संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। इससे पहले 2011 में लोकपाल बिल पर चर्चा के दौरान आरजेडी सांसद राजनीति प्रसाद ने सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए राज्यसभा में बिल की कॉपी फाड़ी थी। इसी तरह 2001 में तत्कालीन सांसद शरद यादव ने विरोध में महिला आरक्षण बिल की कॉपी फाड़ी थी। इन घटनाओं से पता चलता है कि संसद में समय-समय पर इस तरह के विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं, हालांकि यह हमेशा विवाद का विषय बन जाता है।
वक्फ बिल पर ओवैसी का तर्क
ओवैसी ने वक्फ संशोधन बिल को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि यह बिल संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। उनके अनुसार, वक्फ बिल में प्रस्तावित बदलाव जैसे कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना और संपत्ति विवादों में उच्च न्यायालय की भूमिका बढ़ाना मुस्लिम धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
राहुल गांधी ने फाड़ा था बिल
राहुल गांधी ने 27 अगस्त 2010 को लोकसभा में एक बिल की कॉपी फाड़ दी थी। यह घटना तब हुई जब संसद में परमाणु ऊर्जा दायित्व विधेयक पर चर्चा हो रही थी। इस बिल का उद्देश्य परमाणु दुर्घटना की स्थिति में मुआवज़ा और जिम्मेदारी तय करना था, खास तौर पर 1984 की भोपाल गैस त्रासदी जैसी दुर्घटनाओं के संदर्भ में। उस समय युवा कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी ने इस बिल का विरोध किया और इसे फाड़ दिया। उनका तर्क था कि यह बिल जनहित के खिलाफ है और परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को अनुचित संरक्षण देता है। राहुल गांधी ने कहा कि बिल में मुआवज़े की सीमा बहुत कम है और इसे विदेशी कंपनियों, खास तौर पर अमेरिकी फर्मों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है। राहुल के इस तरीके से तत्कालीन सरकार की खूब किरकिरी हुई।