India News (इंडिया न्यूज)waqf amendment bill: बुधवार को लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पारित होते ही केरल के मुनंबम के लोग खुशी से झूम उठे। गौरतलब है कि मुनंबम भू संरक्षण समिति के बैनर तले मुनंबम के लोग पिछले 173 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं। इस दौरान लोगों ने ‘नरेंद्र मोदी जिंदाबाद’ के नारे लगाए। दरअसल, मुनंबम में सैकड़ों एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया था, जिसके बाद यह जमीन विवाद पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था।

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मुनंबम विवाद का राज्यसभा में जिक्र

समिति के संयोजक जोसेफ बेनी ने कहा कि वे लोकसभा में विधेयक पारित होने से बहुत खुश हैं और उम्मीद है कि जब यह विधेयक कानून बन जाएगा तो उन्हें जमीन का राजस्व अधिकार वापस मिल जाएगा। लोगों ने कांग्रेस और वामपंथी सांसदों पर इस मामले में मदद न करने का आरोप लगाया और पीएम मोदी की तारीफ भी की। इन लोगों को उम्मीद है कि वक्फ विधेयक लागू होने के बाद उनकी जमीन पर विवाद खत्म हो जाएगा। गुरुवार को भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर और वी मुरलीधरन भी मुनंबम जाएंगे। उल्लेखनीय है कि गुरुवार को राज्यसभा में वक्फ विधेयक पेश करते समय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने भी मुनंबम विवाद का जिक्र किया था। सिरो मालाबार चर्च ने भी वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन किया और लोकसभा से इसके पारित होने पर खुशी जताई।

क्या है मुनंबम भूमि विवाद waqf amendment bill

केरल के एर्नाकुलम जिले के वाइपिन द्वीप पर मुनंबम तटीय क्षेत्र में सैकड़ों एकड़ भूमि पर कई गांव बसे हुए हैं, जहां पारंपरिक रूप से मछुआरा समुदाय के लोग रहते हैं। केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने यहां की 404 एकड़ भूमि पर दावा किया है। इस भूमि पर बसे 600 परिवार इस दावे के विरोध में उतर आए हैं। इनमें से 400 परिवार ईसाई हैं और पिछड़े लैटिन कैथोलिक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बाकी परिवार हिंदू हैं। विवाद इस बात को लेकर है कि वर्ष 1902 में त्रावणकोर राजघराने ने अब्दुल सत्तार मूसा नामक एक व्यवसायी को 404 एकड़ भूमि पट्टे पर दी थी। बाद में अब्दुल सत्तार कोच्चि चले गए। पीड़ित परिवारों का दावा है कि भूमि पट्टे पर दिए जाने से पहले ही उनके पूर्वज यहां बस गए थे।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वर्ष 1948 में अब्दुल सत्तार के दामाद मोहम्मद सिद्दीकी ने इस भूमि को अपने नाम पर पंजीकृत करा लिया और बाद में इसे कोझिकोड के फारूक कॉलेज के प्रबंधन को सौंपने का फैसला किया। 1950 में कोच्चि के एडापल्ली के सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में एक वक्फ डीड रजिस्टर्ड हुई थी, जिसे सिद्दीकी ने फारूक कॉलेज के चेयरमैन के नाम पर रजिस्टर्ड कराया था। वक्फ डीड एक दस्तावेज होता है जो किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करता है. इस जमीन को लेकर 1960 में कानूनी लड़ाई शुरू हुई थी। जमीन पर रहने वाले लोगों के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं थे. 2008 में केरल सरकार ने एक जांच आयोग का गठन किया। 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। 2019 में केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया. साल 2022 में यह मामला फिर से हाईकोर्ट पहुंचा और इसे लेकर कई अपीलें अभी भी कोर्ट में दायर हैं।

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