India News (इंडिया न्यूज), Waqf Board: वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर लोकसभा में हंगामा मचा हुआ है। वक्फ संशोधन विधेयक पेश करने के बाद संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह विधेयक विरोधियों के दिलों में भी बदलाव लाएगा। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड के पास देश में सबसे ज्यादा निजी जमीन है। इसके बाद भी मुसलमान गरीब हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सेना और रेलवे के बाद देश में सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। क्या आप जानते हैं कि वक्फ के पास कितनी जमीन है और उसका सही इस्तेमाल क्यों नहीं हो पाया? क्या संसद वक्फ को खत्म करने की जमीन तैयार कर रही है!

वक्फ के पास 1.2 लाख करोड़ रुपये की जमीन

साल 2009 से अब तक वक्फ संपत्तियों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने दिसंबर 2022 में लोकसभा में जानकारी दी थी, जिसके मुताबिक वक्फ बोर्ड के पास 8,65,644 अचल संपत्तियां हैं। करीब 9.4 लाख एकड़ वक्फ जमीन की अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है।

सबसे ज़्यादा वक़्फ़ की ज़मीन यूपी में

भारत के हर राज्य में वक़्फ़ बोर्ड है जो वक़्फ़ की संपत्तियों को नियंत्रित करता है. देश के पांच राज्यों में वक़्फ़ की सबसे ज़्यादा संपत्तियां हैं और ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल. अकेले हैदराबाद में वक़्फ़ की 77,000 संपत्तियां हैं, इसीलिए इस शहर को भारत की वक़्फ़ राजधानी कहा जाता है. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में वक़्फ़ की 1.2 लाख संपत्तियां हैं. तेलंगाना का वक़्फ़ बोर्ड देश का सबसे अमीर वक़्फ़ बोर्ड है. उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर आता है. जहां इसकी 1.5 लाख वक़्फ़ संपत्तियां हैं.

इन इस्लामिक देशों में नहीं है वक़्फ़

भारत में वक़्फ़ बोर्ड हो सकता है. लेकिन, यह एक सच्चाई है कि तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, इराक और ट्यूनीशिया जैसे इस्लामिक देशों में वक़्फ़ बोर्ड नहीं है. भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां वक़्फ़ बोर्ड बनाकर मुसलमानों को ज़मीन दी गई. वो भी तब जब वक़्फ़ कोई ज़मीन पर दावा करता तो कोई भी व्यक्ति उसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता था. ऐसी स्थिति में संपत्ति खोना तय था।

नेहरू ने कानून बनाकर मुसलमानों को जमीन दे दी

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 1954 में वक्फ एक्ट बनाया। वक्फ में मिली जमीन या संपत्ति की देखभाल के लिए कानूनी तौर पर एक संस्था बनाई गई, जिसे वक्फ बोर्ड कहा जाता है। 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो बड़ी संख्या में मुसलमान देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए। वहीं, पाकिस्तान से कई हिंदू लोग भारत आए। 1954 में संसद ने वक्फ एक्ट 1954 के नाम से कानून बनाया। इस तरह पाकिस्तान गए लोगों की जमीन और संपत्ति का मालिकाना हक इस कानून के जरिए वक्फ बोर्ड को दे दिया गया। 1955 में यानी कानून लागू होने के एक साल बाद इस कानून में संशोधन किया गया और कहा गया कि हर राज्य में वक्फ बोर्ड बनाए जाएंगे।

देश में शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग 32 वक्फ बोर्ड

इस समय देश के अलग-अलग राज्यों में करीब 32 वक्फ बोर्ड हैं, जो वक्फ की संपत्तियों का पंजीकरण, देखरेख और प्रबंधन करते हैं। बिहार समेत कई राज्यों में शिया और सुन्नी मुसलमानों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं।

वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख एकड़ संपत्ति

पिछले साल फरवरी में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि मुसलमानों की संस्था वक्फ बोर्ड के पास दिसंबर 2022 तक कुल 8,65,646 एकड़ अचल संपत्ति है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में वक्फ की कुल संपत्ति करीब 8 लाख एकड़ है। यह संपत्ति इतनी ज्यादा है कि सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास है। 2009 में यह संपत्ति करीब 4 लाख एकड़ ही थी, जो अब दोगुनी हो गई है। वक्फ को मुसलमानों का रहनुमा कहा जाता है, फिर भी देश में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। सच्चर कमेटी के अनुसार देश में मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जातियों से भी बदतर है।

जब ब्रिटिश राज में जजों ने वक्फ को अवैध घोषित किया

भारत में वक्फ की शुरुआत 11वीं-12वीं सदी में दिल्ली सल्तनत के साथ हुई। एस. अतहर हुसैन और एस. खालिद रशीद की किताब वक्फ लॉज़ एंड एडमिनिस्ट्रेशन इन इंडिया (1968) में बताया गया है कि सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम ग़ावर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव दिए थे। जब भारत में ब्रिटिश राज था, तब भी वक्फ संपत्ति को लेकर काफी विवाद हुआ था। यह विवाद इतना बढ़ गया कि यह लंदन में प्रिवी काउंसिल तक पहुंच गया। 4 ब्रिटिश जजों ने वक्फ को अवैध घोषित कर दिया। लेकिन, उनके फैसले को तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सरकार ने नहीं माना। मुस्लिम वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट, 1913 के ज़रिए वक्फ को बचा लिया गया।

Kesari 2 Trailer: 1650 गोलियां, 10 मिनट और 1 शख्स…जलियांवाला बाग कांड का डरावना मंजर देख कांप जाएगी रूह, कमाल है केसरी चैप्टर 2 ट्रेलर

एससी-एसटी से भी बदतर है मुसलमानों की स्थिति

देश में मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन की स्थिति का पता लगाने के लिए 2005 में सच्चर कमेटी का गठन किया गया था। इस समिति ने 2006 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक आबादी के गांवों और रिहायशी इलाकों में स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकानें, सड़क और पीने के पानी जैसी सुविधाओं का बहुत अभाव है। यहां तक ​​कि मुस्लिम समुदाय की हालत अनुसूचित जाति और जनजाति से भी बदतर है। 2006 में सरकारी नौकरियों में केवल 4.9 प्रतिशत मुस्लिम थे।

इतनी संपत्ति होने के बावजूद मुसलमान शिक्षा में क्यों पिछड़ रहे हैं?

मुस्लिम समुदाय या वक्फ बोर्ड के पास पर्याप्त संपत्ति है। उन्हें इसे हिंदुओं से लेने की जरूरत नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात मुसलमानों की शिक्षा है। सच्चर कमेटी का कहना है कि सामान्य आबादी के 70 प्रतिशत बच्चों की तुलना में केवल 59 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। कई मुस्लिम बच्चे ऐसे हैं जिन्हें बीच में ही स्कूल छोड़ना पड़ता है।

बेडरूम में डायरेक्टर के साथ मिली मोनालिसा, अंदर हो रहा था कुछ ऐसा काम, मामला जान उड़ जाएंगे आपके भी होश

उच्च शिक्षा में मुसलमानों की स्थिति और भी खराब

उच्च शिक्षा के मामले में स्थिति और भी खराब है। केवल 4.9 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे ही विश्वविद्यालय में प्रवेश पा पाते हैं। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड ज्यादातर धार्मिक कार्य करता है। यह अपने स्वामित्व वाली जमीनों और मस्जिदों के रखरखाव पर पैसा खर्च करता है। इसके साथ ही यह वक्फ की जमीन पर बने विश्वविद्यालयों, स्कूलों और मदरसों का प्रबंधन भी करता है। ऐसे में इसे मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए मुस्लिम समुदाय की शिक्षा पर अधिक ध्यान देना चाहिए। अगर वक्फ अपनी संपत्ति मुसलमानों की शिक्षा में लगाए तो मुसलमानों की स्थिति सुधर सकती है। मुस्लिम समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है ताकि वे देश की जीडीपी में बेहतर योगदान दे सकें।

अखिलेश से लेकर केजरीवाल तक, अनिल विज ने सबको लिया आड़े हाथों, वक्फ बिल को लेकर कह दी ऐसी बात, तिलमिला उठा पूरा विपक्ष