India News (इंडिया न्यूज),Waqf case:वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई पूरी हो गई है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों के मामले को लेकर सरकार से बड़ा सवाल पूछा। कोर्ट ने पूछा, क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने के लिए तैयार है? कोर्ट ने वक्फ कानून को लेकर कोलकाता में हुई हिंसा पर भी चिंता जताई। अब इस मामले में अंतरिम आदेश पारित करने पर गुरुवार दोपहर 2 बजे सुनवाई होगी। कोर्ट में सुनवाई के मुख्य बिंदुओं को जानने से पहले आइए याचिकाओं के आधार पर एक नजर डालते हैं।

क्या है याचिकाओं का आधार?

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि नया वक्फ अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। अधिवक्ता कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने कोर्ट में दलील दी कि वक्फ इस्लाम का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है और सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सिब्बल ने कहा कि यह कानून न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि मुसलमानों की निजी संपत्तियों पर सरकार का ‘अधिग्रहण’ भी है। उन्होंने कहा कि कानून की कई धाराएं, खासकर धारा 3(आर), 3(ए)(2), 3(सी), 3(ई), 9, 14 और 36 असंवैधानिक हैं और मुसलमानों को धार्मिक, सामाजिक और संपत्ति के अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

कोर्ट ने कही ये बात

सीजेआई संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि सभी याचिकाकर्ताओं को सुनना संभव नहीं होगा, इसलिए केवल चुनिंदा वकील ही बहस करेंगे और कोई भी बहस दोहराई नहीं जाएगी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अनुच्छेद 26 की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को रेखांकित किया और कहा कि यह सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होता है। वहीं, जस्टिस विश्वनाथन ने स्पष्ट किया कि संपत्ति धर्मनिरपेक्ष हो सकती है, केवल उसका प्रशासन धार्मिक हो सकता है। उन्होंने बार-बार दलीलें दोहराने से बचने की सलाह दी। सीजेआई ने कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई और फैसला देने में सुप्रीम कोर्ट पर कोई प्रतिबंध है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर विचार करने के लिए कहना चाहते हैं। पहला- इस पर विचार किया जाए या इसे हाईकोर्ट को सौंप दिया जाए? दूसरा- संक्षेप में बताएं कि वास्तव में क्या मांगा जा रहा है और क्या तर्क दिए जाने हैं। दूसरा, यह पहले मुद्दे पर निर्णय लेने में कुछ हद तक हमारी मदद कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट पर रोक नहीं लगाई है। सीजेआई ने कहा कि जो भी संपत्ति वक्फ घोषित की गई है, जो भी संपत्ति उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित की गई है, या कोर्ट द्वारा घोषित की गई है, उसे डी-नोटिफाई नहीं किया जाएगा। कलेक्टर कार्यवाही जारी रख सकते हैं, लेकिन प्रावधान लागू नहीं होगा। पदेन सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं। उन्हें धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य मुस्लिम होने चाहिए।

केंद्र सरकार का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि वक्फ एक्ट का उद्देश्य केवल संपत्ति का विनियमन है, धार्मिक हस्तक्षेप नहीं। उन्होंने कहा कि सरकार ट्रस्टी के रूप में कार्य कर सकती है और कलेक्टर को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है, ताकि संपत्ति विवादों का जल्द समाधान हो सके। मेहता ने यह भी कहा कि 1995 से 2013 तक केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड के सदस्यों को मनोनीत करती रही है। उन्होंने कहा कि वक्फ न्यायाधिकरण एक न्यायिक निकाय है और न्यायिक समीक्षा का अधिकार बरकरार है।

कपिल सिब्बल की मुख्य दलीलें

  • धारा 3(आर): वक्फ की परिभाषा में राज्य का हस्तक्षेप असंवैधानिक है
  • धारा 3(ए)(2): महिलाओं के संपत्ति अधिकारों में हस्तक्षेप
  • धारा 3(सी): सरकारी संपत्ति को स्वतः वक्फ नहीं माना जाता
  • धारा 14: बोर्ड में नामांकन के माध्यम से सत्ता का केंद्रीकरण
  • धारा 36: पंजीकरण के बिना भी संपत्ति का धार्मिक उपयोग संभव
  • धारा 7(ए) और 61: न्यायिक प्रक्रियाओं में अस्पष्टता

याचिकाकर्ताओं की क्या मांग है?

वक्फ कानून का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि अंतिम निर्णय होने तक वक्फ संशोधन अधिनियम पर रोक लगाई जाए। वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि पारदर्शिता और प्रशासनिक सुगमता के लिए ये संशोधन जरूरी हैं।

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