इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
दिल्ली की लेखिका गीतांजलि श्री का हिंदी उपन्यास ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा की पहली किताब बन गई है। भारतीय भाषा की पहली किताब टॉम्ब ऑफ़ सैंड यानि रेत समाधि को पहली बार बुकर अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है। यह उपन्यास सीमा पार करने वाली 80 वर्षीय नायिका पर आधारित है। गीतांजलि श्री का यह उपन्यास दुनिया की उन 13 पुस्तकों में से एक था, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की लिस्ट में शामिल किया गया था। “टॉम्ब ऑफ सैंड” बुकर को जीतने वाली हिंदी भाषा की पहली बुक भी है।
कौन हैं अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली गीतांजलि श्री, जिन्होंने लिखी टॉम्ब ऑफ सैंड
यह उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ़ सैंड’ है। गीतांजलि की उम्र 64 साल है और वो दिल्ली में रहती हैं। गीतांजलि ने उर्दू की कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद भी किया है।
मैंने कभी नहीं देखा था बुकर का सपना : गीतांजलि
अवॉर्ड जितने के बाद यूपी के मैनपुरी की गीतांजलि श्री ने अपने भाषण में कहा की मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कर सकती हूं। ‘रेत समाधि/रेत का मकबरा’ उस दुनिया के लिए एक शोकगीत है जिसमें हम निवास करते हैं, एक स्थायी ऊर्जा जो आसन्न कयामत के सामने आशा बनाए रखती है।
टॉम्ब ऑफ सैंड में विभाजन के बाद 80 वर्षीय महिला की कहानी
बुकर जीतने वाला गीतांजलि श्री का ‘रेत समाधि’ पांचवां उपन्यास है। यह एक 80 वर्षीय महिला की कहानी है जो अपने पति की मृत्यु के बाद बेहद उदास रहती है। आखिरकार, वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूट गए अतीत की कड़ियों को जोड़ने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है। साथ ही साथ विभाजन के अपने किशोर अनुभवों के अनसुलझे आघात का सामना करती है, और एक माँ, एक बेटी होने का क्या मतलब है, इसका पुनर्मूल्यांकन करती है।
कौन हैं अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली गीतांजलि श्री, जिन्होंने लिखी टॉम्ब ऑफ सैंड
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ जन्म
गीतांजलि श्री ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में 12 जून 1957 को जन्म लिया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा यूपी के कई शहरों में हुई। गीतांजलि ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर गहन शोध भी किया। उन्होंने कुछ दिन जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापन का भी काम किया। उन्होंने सूरत के सेंटर फार सोशल स्टडीज में पोस्ट-डाक्टरल पर शोध किया। साथ ही उन्होंने साहित्य सृजन की शुरूआत की।
गीतांजलि श्री की रचनाएं
उनकी पहली कहानी ‘बेलपत्र’ वर्ष 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी दो और कहानियां एक के बाद एक ‘हंस` में प्रकाशित हुईं। अभी तक उनके पांच उपन्यास – ‘माई`,’हमारा शहर उस बरस`,’तिरोहित`,’खाली जगह’, ‘रेत-समाधि’ प्रकाशित हो चुके हैं और पांच कहानी संग्रह – ‘अनुगूंज`,’वैराग्य`,’मार्च, मां और साकूरा’, ‘यहां हाथी रहते थे’ और ‘प्रतिनिधि कहानियां’ प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘माई’ उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद ‘क्रॉसवर्ड अवार्ड` के लिए नामित आखिरी चार किताबों में शामिल था। ‘खाली जगह’ का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में भी हो चुका है।
कई सम्मानों से सम्मानित हो चुकीं हैं गीतांजलि श्री
हिंदी अकादमी ने उन्हें 2000-2001 के साहित्यकार सम्मान से सम्मानित किया। 1994 में उन्हें उनके कहानी संग्रह अनुगूंज के लिए ‘यूके कथा सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा वह इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान, जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वालेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से भी सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। इसके अलावा उन्हें नॉन्त स्थित उच्च अध्ययन संस्थान की फ़ेलोशिप मिली है। साथ ही स्कॉटलैंड, स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस में राईटर इन रेज़िडेंसी भी रही हैं। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है।
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