India News (इंडिया न्यूज), Sukhbir Singh Badal: कभी पंजाब की सत्ताधारी पार्टी रही अकाली दल इन दिनों संकट से गुजर रही है। 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में पार्टी की हालत खस्ता रही और दिग्गज नेता प्रकाश सिंह बादल समेत कई नामचीन चेहरे हार गए। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी उसे सिर्फ एक सीट मिल सकी। इसके बाद अब बगावत के संकेत मिल रहे हैं और 60 नेताओं ने सुखबीर बादल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इन लोगों की मांग है कि सुखबीर बादल को अकाली दल का नेतृत्व छोड़ देना चाहिए क्योंकि उनके नेतृत्व को करारी हार मिली है। हालात ये हैं कि सुखबीर बादल के करीबी कहे जाने वाले बरजिंदर सिंह हमदर्द भी अब बागी गुट का हिस्सा बन गए हैं।
इसके अलावा अकाली दल के वरिष्ठ नेता और विधायक बिक्रम सिंह मजीठिया भी पूरे मामले पर खामोश हैं। मजीठिया की खामोशी को लेकर यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद वह बादल से खुश नहीं हैं। अभी तक उनका बयान तो नहीं आया है, लेकिन सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि मजीठिया का अगला कदम क्या होगा और वह किस गुट के साथ होंगे। लोकसभा चुनाव में अकाली दल ने सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज की थी। 10 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। ऐसे में विधानसभा चुनाव के बाद से ही पनप रहा गुस्सा अब अकाली दल में फूट पड़ा है।
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इसकी शुरुआत विधायक मनप्रीत सिंह अयाली ने की। उन्होंने पार्टी के सभी कार्यक्रमों से दूरी बनानी शुरू कर दी। इसके बाद सुखबीर बादल के राजनीतिक सचिव रहे चरणजीत सिंह बराड़ ने भी नेतृत्व पर हमला बोला। पिछले कई दिनों से उनका बादल के करीबी परमबंस सिंह बंटी रोमाना से सोशल मीडिया पर विवाद चल रहा था। दोनों सोशल मीडिया पर खुलकर हमला कर रहे थे। अकाली दल और पंजाब की राजनीति को समझने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस विवाद की जड़ खडूर साहिब लोकसभा सीट से अमृतपाल सिंह की जीत भी है।
अमृतपाल के अलावा सरबजीत की जीत भी दे रही टेंशन इसके अलावा फरीदकोट लोकसभा सीट से सरबजीत सिंह खालसा की जीत ने भी अकाली दल में माहौल खराब किया है। अकाली दल के नेताओं को लगता है कि पार्टी में पंथिक मतदाताओं का भरोसा कम हुआ है। यही वजह है कि उन्होंने खालिस्तानी विचारों वाले दो निर्दलीय उम्मीदवारों को भी जिताया, लेकिन अकाली को सिर्फ एक सीट मिली। ऐसे नेताओं को लगता है कि अब अकाली दल पर सिख मतदाताओं का भरोसा पहले जैसा नहीं रहा। दूसरी ओर सुखबीर बादल खेमा अपने खिलाफ उठे गुस्से को पचा नहीं पाया है और बगावत को भाजपा की साजिश बता रहा है।